कौन रोके है, ओबीसी महिलाओं को आरक्षण दीजिए

नवेद शिकोह
नवेद शिकोह

आईएमआईएम प्रमुख इकलौते असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी पार्टी के एक सांसद सहित महिला आरक्षण बिल के ख़िलाफ़ वोट दिया। मुस्लिम और ओबीसी महिलाओं का आरक्षण में आरक्षण ना होने को बिल की मुखालिफत का कारण बताया। लेकिन विचारणीय बात ये हैं कि खुद ओवेसी अपनी पार्टी में मुस्लिम और ओबीसी महिलाओं की तादाद के हिसाब से उन्हें हिस्सेदारी का हक़ नहीं देते। ना टिकट बंटवारे में और ना पार्टी संगठन में। यानी खुद भले ही हक़ ना दें पर देश में मुस्लिम और ओबीसी महिलाओं को सियासत में उनकी तादाद के हिसाब से डबल रिजर्वेशन का संवैधानिक हक़ मिले। एक महिला होने का और एक आरक्षण मुस्लिम या ओबीसी होने का। ये सच है कि जो जितना कमजोर और मुख्यधारा से दूर हो उसे उतना ही अधिक अवसर मिलना चाहिए। पर सवाल ये कि ऐसी मांग करने वाला खुद अपनी पार्टी में अपने विचारों को अमल में क्यों नहीं लाता ?

ओवेसी ही नहीं देश के किसी भी राजनीतिक दल में अभी, इस वक्त से ओबीसी महिलाओं को आरक्षण में आरक्षण दिया जा सकता है ! आपकी मर्जी है, आपके हाथ मे है और आपकी ख्वाहिश भी है। जिस राजनीतिक दल को लगे कि तैतीस प्रतिशत कम है वो दल पचास प्रतिशत या उससे भी ज्यादा महिलाओं को सियासत में हिस्सेदारी दे सकता है। जिसको लगे कि इस आरक्षण में ओबीसी और मुस्लिम महिलाओं को डबल आरक्षण यानी आरक्षण में आरक्षण मिलना चाहिए है तो वो दल तत्काल अपनी पार्टी में इसे लागू करवा सकता है। लेकिन दुर्भाग्य है कि सियासत करने वाले जिस मुद्दे के लिए राजनीति करते है उसपर ख़ुद ही अमल नहीं करते।

एक नेता जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन की जागरूकता के लिए जनसभा कर रहे थे। उनको फोन पर ख़ुशखबरी मिली कि उनकी पत्नी ने बच्चे को जन्म दिया । पब्लिक ने बधाई दी और नेता से पूछा कि पहला बच्चा है या दूसरा। नेता जी ने बताया- पांचवा।

इसी तरह जो विपक्षी गरीब, पिछड़ी, दलित, मुस्लिम महिलाओं के लिए आरक्षण के पक्ष मे हैं, या जो पचास फीसद महिला आरक्षण की हिमायत में हैं, उनकी पार्टी में क्या पचास फीसद ओबीसी और मुस्लिम महिलाओं को सियासी हिस्सेदारी दी जाती है ? या वो बिल पास होने से पहले महिला रिजर्वेशन की अपनी ख्वाहिश को अपनी पार्टी में पूरा करेंगे ?

सवाल विधेयक लाने वाली सत्तारूढ़ भाजपा के सामने भी हे। भाजपा ने भी क्या आधी आबादी को अपनी पार्टी में पंद्रह प्रतिशत भी भागीदारी दी कभी ? नहीं दी। भाजपा कह रही है कि कांग्रेस की इच्छा शक्ति ही नहीं थी कि वो अपनी सरकार में ये बिल पास करवाती। लेकिन भाजपा मे कितनी इच्छा शक्ति है इस पर भी सवाल बनते हैं। चुनाव के छह महीने पहले शगूफा छोड़ने वाली मोदी सरकार साढ़े नौ साल से क्या कर रही थी ?

जनगणना और परिसीमन में अनेकों साल और अनेकों चुनाव गुजर जाएंगे और पक्ष-विपक्ष की पूर्ण सहमति से बिल पास होने के बाद भी महिलाओं को अर्से तक इसका लाभ नहीं मिल सकेगा। श्रेय का ढिंढोरा पीटने वाली भाजपा को अपनी गैरजिम्मेदाराना हरकत की भी जिम्मेदारी लेना चाहिए है। नियमानुसार समय से जनगणना ना होना भी एक बड़ा सवाल है। समय से जनगणना ना होने के क्या कारण है ?
यदि कोई कारण था भी तो इसके समाधान के लिए सरकार ने क्या किया ?

दरअसल कड़वी सच्चाई यही है कि कोई भी दल दिल से नहीं चाहता है कि ये बिल जमीन पर उतरे। मुंह पर सहमति और इसके हर रास्ते पर असहमति के कांटे बिछे हैं। जनगणना और परिसीमन से पहले ये बिल लागू नहीं हो सकता। अब जब जनगणना की नौबत आएगी तो जातिगत जनगणना का हल्ला जनगणना के रास्ते में रुकावट बनेगा। सच्चाई यही है कल से आज तक कोई भी दल मन से नहीं चाहता कि आधी आबादी हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर की हिस्सेदारी निभाए ।

भाजपा और कांग्रेस सहित देश के विभिन्न राजनीतिक दलों ने कितनी महिलाओं को राष्ट्रीय/प्रदेश अध्यक्ष बनाया?

कितनी महिलाएं जिला अध्यक्ष हैं ? किस दल ने कितनी महिलाओं को संगठन प्रभारी बनाया ? सामान्य सीटों पर किस दल ने कितने फीसद महिलाओं को टिकट देने लायक़ समझा?

कितनी महिलाएं प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, राज्यपाल, कैबिनेट मंत्री.. बनाई गईं। आंकड़ों का एवरेज देखिए तो आधी आबादी को विभिन्न दलों ने पंद्रह फीसदी हिस्सेदारी भी नहीं दी। पुरुष प्रधान समाज में राजनीतिक दल भी पुरुष प्रधान विचारधारा वाले हैं। इस हम्माम में सब नंगे हैं। सत्तारूढ़ भाजपा हो कांग्रेस या अन्य दल, सभी आधी आबादी के वोटबैंक को रिझाने की राजनीति कर रहे हैं।‌ नहीं तो सबके हाथ में था कि वो अपने-अपने दलों में महिलाओं को तैतीस या इससे भी ज्यादा हिस्सेदारी देने के लिए स्वतंत्र थे और हैं। ऐसे में बिल पास होने या लागू करने कि जरुरत ही नहीं थी।

बिल पास हो ही चुका है तो राजनीति दल इसे लागू होने की जटिलताओं के मोहताज नहीं हैं। ओबीसी/दलित/अल्पसंख्यक, आदिवासी, सवर्ण.. इनके उत्थान के लिए आप जिस वर्ग को जितनी भी हिस्सेदारी देनी है दीजिए, आपको कौन रोके है?

एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी को छोड़कर देश के सभी राजनीतिक दल महिला आरक्षण के हिमायती हैं। आधे मन से बिल के समर्थन में वोट करने वाले विपक्षियों ने इसे अधूरा माना है। आरक्षण में ओबीसी आरक्षण ना होना कांग्रेस सहित अधिकांश क्षेत्रीय दलों को नागवार गुज़रा है। कईयों ने कहा कि आधी आबादी को आधी हिस्सेदारी यानी पचास फीसद आरक्षण मिलना चाहिए था। अकेले एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने बिल के खिलाफ वोट किया और कहा कि ये सिर्फ सवर्ण वर्ग की महिलाओ के लिए है, जबकि इस आरक्षण में मुस्लिम और ओबीसी का अतिरिक्त आरक्षण होना चाहिए था।

महिला आरक्षण बिल कब और कैसे लागू होगा ! तमाम तकनीकी जटिलताओं को पार करने में काफी अर्से के बाद महिलाएं सियासत में तैंतीस फीसद हिस्सेदारी हासिल कर सकेगी। लोकसभा में बिल तो पास हो गया लेकिन इसे लागू होने से पहले राजनीतिक दलों के नेताओं ने अपने बयानों के मुताबिक महिलाओं को हिस्सेदारी नहीं दी तो ये दल जनता के बीच फेल हो जाएंगे। पास होना है तो पार्टियां अपने-अपने संगठनों में महिलाओं, ओबीसी-मुस्लिम महिलाओं को खूब स्थान दें। आने वाले चार राज्यों के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में अपने बयानों के मुताबिक महिला आरक्षण लागू कर दें।

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