इंडिया गंठबंधन कैसे दे सकेगा स्थिर सरकार !

नवेद शिकोह
नवेद शिकोह

इंडिया गंठबंधन में झगड़े होते रहेंगे और झगड़े सुलझते भी रहेंगे। मान लीजिए अंतोगत्वा इनकी एकजुटता सरकार भी बना लेगी। लेकिन ये सरकार क्या स्थिर रह पाएगी !

आपसी झगड़ों की खबरों के साथ उभरे ऐसे प्रश्न का बड़ा वजन है। एक बड़ा खेमा भाजपा के साथ है और एक वर्ग विरोध मे है। कुछ ऐसे भी हैं जो भाजपा को पूरी तरह पसंद नहीं करते लेकिन वोट उसे इसलिए दे देते हैं कि उन्हें लगता है कि भाजपा को हराने वाला फिलहाल कोई है ही नहीं।

 

इंडिया गठबंधन की एकजुटता का माहौल ऐसे वर्ग को प्रभावित कर रहा था, बता रहा था कि अब भाजपा को चुनौती देने की राजनीतिक ताकत का प्लेटफार्म तैयार हो चुका है। प्रभाव पड़ता दिख भी रहा था। लेकिन कांग्रेस और सपा के झगड़ों ने इस प्रभाव को कमजोर तो किया ही ये भी प्रश्न खड़ा कर दिया कि यदि इंडिया गठबंधन जीत जाता है तो इनकी सरकार कितने दिन चल पाएगी ?

लड़-झगड़ कर भी गठबंधन पांच-छह महीने बरकरार रह सकता है लेकिन सरकार लड़-झगड़कर कर भी पांच साल तक स्थिर रहे ये कठिन है।

एनडीए में भाजपा अब तक अकेले इतना जनादेश लाती रही कि वो अकेले बूते पर भी बहुमत का आकड़ा पा करती रही। यही कारण रहा कि केंद्र हो या राज्यों में सहयोगी दल भाजपा पर हावी नहीं हो पाए। झगड़े कम हुए। हां कुछ साथी साथ छोड़कर जरूर गए। एनडीए का कुनबा बीच में  सुकड़ सा गया। लेकिन ऐसे झगड़ों व खराब माहौल से ऐसा खतरा कभी नहीं बना कि केंद्र में सरकार चली जाने की नौबत आ गई हो। कारण ये भी था कि अकेले भाजपा के पास ही बहुमत है और नरेंद्र मोदी जैसे नेता हैं।

ये बात दिलचस्प है कि भाजपा जैसे ताकतवर दल को भी गठबंधन का सहारा लेना पड़ता है। क्षेत्रीयता और जातियों को साथ लेने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों और जातियों के नेताओं को साथ लेना बड़े से बड़े दल की मजबूरी है। ऐसी मजबूरी ही विवाद या दबाव का कारण भी बनती है। रूठने -मनाने, सबको साथ रखने और सबका विश्वास क़ायम रखने के बेलेंस को ही आज के राजनीतिक नेतृत्व की बाजीगरी कहा जाता है। लड़ाई इतनी ही हो कि आवाज घर की चारदीवारी के बाहर ना जाए। अपनो के विरोध की कड़वाहट इतनी हो कि मनाने की गुंजाइश बची रहे। थोड़े बहुत आपसी झगड़े आम बात है।

भारत की परंपरा में संयुक्त परिवारों में अकसर रिश्तों के बर्तन खटकते हैं।   बारातों में फूफा के रूठने से शादियां असफल नहीं होती। ऐसा ही भारतीय राजनीति में भी होता रहा है। गठबंधन के साथी आपस में लड़ते भी हैं और एकजुट होकर सामने वाले राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी को हरा भी देते हैं।

ऐसा नहीं है कि गठबंधन सिर्फ एक तरफ है, भारत में गठबंधन की राजनीति का दौर चल रहा है। एक तरफ विरोधी दलों का इंडिया गठबंधन है तो दूसरी तरफ सत्तारूढ़ भाजपा का एनडीए है। केंद्र सरकार की तमाम कमियों और खूबियों को छोड़कर ये बात तो कही जा सकती है कि एनडीए ने साबित किया है कि वो स्थिर और मजबूत सरकार देने में खरे उतरे हैं। इसका कारण है एनडीए का नेतृत्व करने वाली भाजपा का काफी मजबूत होना। और भाजपा की मजबूती का कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसे नेता हैं। जिनका काबू भाजपा पर तो है ही सहयोगी दलो पर भी है।

इस बात को आप दूसरे नजरिए से देखिए तो ये भी कह सकते हैं कि इंडिया गठबंधन की आपसी तकरार यहां की लोकतांत्रिक स्वतंत्रता है।  समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता इंडिया के प्रमुख दल के नेता राहुल गांधी को सार्वजानिक तौर से पब्लिक डोमेन पर अपशब्द लिख सकते हैं। लेकिन एनडीए में ऐसा संभव नहीं है।

 

इंडिया गंठबंधन के बारे में बहुत सकारात्मक सोच भी नकारात्मकता की तरफ ले जाती है। संयोजक तय होने और लोकसभा सीटों के बंटवारे से पहले इस गठबंधन के सबसे बड़े राष्ट्रीय दल कांग्रेस और सबसे बड़े क्षेत्रीय दल सपा के बीच टकराव को नजरंदाज कर दीजिए। मान लीजिए सबकुछ ठीक हो जाएगा। आगे तृणमूल कांग्रेस,आम आदमी पार्टी, सपा, वाम दल और अन्य दलों से भी सीटों के बंटवारे को लेकर खींचातानी को भी गठबंधन की स्वाभाविकता मान लेंगे। ये भी उम्मीद कर लेंगे कि लाख तकरारों के बाद भी भाजपा को हराने के लिए अंततः विरोधी दल मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। थोड़ी देर के लिए ये भी कल्पना कर लीजिए कि इंडिया आपसी विरोधाभास के बाद भी मिलकर एनडीए को चुनौती दे देगा।

इंडिया को वोट देने का इरादा बनाने वाले मतदाताओं के मन में ऐसे आशावादी विचारों के साथ ये भी ख्याल आएगा की टूटे कप के कांच के टुकड़ों को जोड़कर क्या इसमें ज्यादा देर तक सत्ता की चाय रखी जा सकती है। यानी आपसी झगड़ों के बीच भी गठबंधन जीत कर सरकार बना भी ले तब ये सरकार कितने दिन तक स्थिर रहेगी ?

जाहिर सी बात है ऐसी सरकार मजबूत नहीं होगी। गठबंधन में यदि कांग्रेस अकेले बहुमत या बहुमत के करीब आने की सफलता हासिल कर लेती है तब ही इंडिया गठबंधन स्थिर सरकार देने की स्थिति में ज़रूर होगा।

कांग्रेस की इंदिरा सरकार के खिलाफ जेपी आंदोलन से उभरे संपूर्ण विपक्षियों की जनता पार्टी से लेकर वी. पी. सिंह ने ही भी कांग्रेस के खिलाफ ही विपक्षी ताकतों का हुजूम इकट्ठा कर के सत्ता प्राप्त की थी। थर्ड फ्रंट के बाद एनडीए और यूपीए का दौर शुरू हुआ। सारे गठबंधनों और इनकी राजनीति व सरकारों पर गौर कीजिए तो पता लगता है कि गठबंधन वृक्ष की तरह होता है। ये तब ही लम्बे समय तक रह कर सत्ता की छांव दे सकता है जब इसके पास टहनियों, पत्तियों,शाखाओं से बड़ा जड़ युक्त तना हो।

 

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