दो हजार साल पुराना इतिहास है चांपानेर का। गुजरात गांधी का प्रदेश है तो चांपानेर इसका जीवंत और कीमती धरोहर..

गुजरात स्थित पावागढ़ पहाडिय़ों के बीच बसा हुआ है ऐतिहासिक नगर चांपानेर। गुजरात के पांचमहल जिले में है यह छोटी सी नगरी, लेकिन यहां आप पाएंगे पुरातात्विक महत्व की लगभग 114 संरचनाएं जिनमें जैन मंदिर, मंदिर और मस्जिदें शामिल हैं। इन्हीं संरचनाओं के बीच आप देख सकते हैं ऐसी कुछ बेहद अनोखी संरचनाएं, जिन्हें देखकर अंदाजा हो जाता है कि दो हजार साल पहले भी लोगों की तकनीकी समझ कितनी उत्कृष्ट थी। जैसे पानी के अनेक जलाशय, जो कि इस पूरे नगर को जीवित रखने के लिए बड़े जरूरी थे। यदि यह कहें कि यह पूरा नगर अर्बन प्लानिंग का बेजोड़ नमूना रहा है, तो गलत नहीं होगा।

चांपानेर में घूमने वाली जगहें

आमिर मंजिल

चांपानेर की खुदाई मे एक परिसर मिला था, जिसको आमिर मंजिल नाम से जाना जाता है। यह एक आवसीय परिसर था, जिसका उपयोग राजघराने के लोग किया करते थे।

चांपानेर-पावागढ़ आर्कियोलॉजिकल पार्क

इस जगह को मानव इतिहास के एक दस्तावेज के रूप में माना जाता है, जिसके महत्व को समझते हुए यूनेस्को ने इसे सन् 2004 में इसे विश्र्व धरोहर का दर्जा दिया। पुरातात्विक खुदाई में जैसे मानो एक पूरा का पूरा नगर उभरकर सामने आ गया हो। क्या नहीं था इस नगर में। सड़कें, पार्क, शॉपिंग कॉंप्लेक्स, लोगों के रहने के घर, उनके इस्तेमाल की वस्तुएं। इस परिसर का रखरखाव बहुत बढिय़ा तरीके से किया गया है।

टकसाल

यहां कभी एक टकसाल भी हुआ करती थी। इसके प्रमाण यहां पर बनी एक संरचना से मिलते हैं। गुजरात सुल्तनत के लिए चांपानेर एक विशेष महत्व की जगह थी। इसलिए यहां टकसाल बनाई गई। यहां चांदी और तांबे के सिक्के ढाले जाते थे। गुजरात की चार टकसालों अहमदाबाद, अहमदनगर और जूनागढ़ में यह एक मुख्य टकसाल थी।

सात कमान

सात कमान अपने आप में एक बड़ी ही रोचक संरचना है। यह पावागढ़ हिल, सदन शाह और बुधिया दरवाजा के बीच स्थित है। देखने में यह केवल एक साथ बनी सात मेहराबें नजर आएं लेकिन यह असल में फौज के लिए एक ऐसा स्थान था जहां से पूरे क्षेत्र का जायजा लिया जा सकता था।

जामी मस्जिद

इस पूरे इलाके की सबसे सुंदर संरचना है जामी मस्जिद, जो इस्लामिक और भारतीय स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। इस मस्जिद मे 172 खंबे हैं, जो कि मुख्य गुंबद का आधार हैं। इस मस्जिद का निर्माण काल लगभग 15वीं शताब्दी माना जाता है। इसकी मेहराबें, गुंबद और मीनारें जहां इस्लामिक आर्किटेBर पर आधारित हैं वहीं झरोखे गुजराती वास्तुकला पर आधारित। इस मस्जिद में राजस्थान के रणकपुर स्थित जैन मंदिर की वास्तुकला और कार्विंग वर्क के हूबहू नमूने देखने को मिलते हैं। इस मस्जिद के पास में ही एक विशाल पौंड बना हुआ है जिसे हौज़-आ-वज़ू कहते हैं। यह मस्जिद पावागढ़ फोर्ट के रास्ते में आती है।शहर की मस्जिदयहां के सुल्तान और उनके राज परिवार के व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए बनवाई गई थी। इस मस्जिद में अनेक दर, गुंबद और दो मीनारें हैं। इस मस्जिद में जाली की नक्काशी का सुंदर काम देखने को मिलता है

केवड़ा मस्जिद

यह मस्जिद दो मंजिली है। इसका मुख्य गुंबद अब मौजूद नहीं है। इसके मुख्य आधार स्तंभ पर सुंदर कर्विंग वर्क देखने को मिलता है।नगीना मस्जिदनगीना का अर्थ होता है कुछ खास। और ऐसी ही खास है इस मस्जिद की संरचना। इसे बनाने में बहुत कारीगरी दिखाई गई है। इसमें 3 मुख्य गुंब, 80 खंबे और अनेकझरोखे हैं। इसके पास ही एक स्टेप वेल है।लीला गुंबज-की-मस्जिदयह भी एक खूबसूरत संरचना है। इस मस्जिद के तीन प्रवेश द्वार हैं। इसकी संरचना में नक्काशी, कर्विंग वर्क देखने को मिलता है। एक मीनार की मस्जिदएक मीनार की मस्जिद का निर्माण बहादुर शाह ने करवाया था। इस मस्जिद में केवल एक मीनार है, जिसमें पांच मंजिलें हैं।

महमूद बेगड़ा की ‘स्मार्ट सिटी’

चांपानेर के किले का सामरिक महत्व रहा है। ऐसा माना जाता था कि गुजरात पर राज करने के लिए इससे बेहतर जगह कोई हो ही नहीं सकती थी। इसीलिए इस पर कई बड़े आक्रमण हुए। पहले यह जैन राजाओं के पास रहा। फिर राजपूत राजाओं के अधीन रहा। बाद में महमूद शाह प्रथम जिसे, महमूद बेगड़ा भी कहा जाता था के अधीन आया। उस समय के राजाओं गुर्जर प्रतिहार, राजपूत, परमार आदि का मानना था कि मालवा पर सैन्य करवाई करने के लिए यह स्थान सबसे उचित है। महमूद बेगड़ा इस शहर को एक ‘स्मार्ट सिटी’ बनाना चाहता था इसलिए उसने यहां कई महत्वपूर्ण निर्माण कार्य करवाए गए, जैसे-सड़कें, ब्रिज, जलाशय और सैन्य उपयोग की इमारतें। लेकिन यह समय ज्यादा लंबा न चल सका और जल्द ही इस आधुनिक शहर को गुमनामी के अंधेरों में जाना पड़ा। महमूद बेगड़ा के बाद यह शहर गुजरात के सुल्तान के पास चला गया। उसके बाद यह मराठाओं के अधीन आया। कुछ समय तक सिंधिया घराने के शासकों ने इस पर राज किया और फिर ब्रिटिश हुकूमत के कब्जे में पहुंच गया। इस पूरे किले की चारदीवारी अपने आप में एक सुरक्षा कवच का काम करती है, जिसके नौ दरवाजे हैं।

लाकुशिया माता का मंदिर

चांपानेर-पावागढ़ आर्कियोलॉजिकल पार्क में सबसे पुराना मंदिर लाकुया माता के ंदिर को माना जाता है। इसका समय 10-11 शताब्दी माना गया है। यह मौलिया पठार पर स्थित है। लाकुसिया शिव भगवान की भक्त थीं, जिनका यह मंदिर है।

यहां हुआ बैजू बावरा का जन्म!

मां महाकालिका खीची चौहान वंश की कुलदेवी मानी जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि जहां यह मंदिर बना है वहां मां काली के पांव का अंगूठा गिरा था। यहां के स्थानीय लोगों में इस मंदिर की बड़ी महत्ता है। कहते हैं कि तानसेन के गुरु बैजू बावरा का जन्म यहीं हुआ था। वह जन्म से ही गूंगे थे। यह मां काली का ही प्रताप था कि उनको यहां आकर अपनी आवाज मिली और वह प्रख्यात गायक हुए। यह मंदिर पावागढ़ पहाड़ी की चोटी पर 740 मीटर की ऊचांई पर बना हुआ है। यहां तक पहुंचने के लिए अब एक रोपवे भी मौजूद है। यह मंदिर भारत में महाकाली के शक्तिपीठ स्थलों में से एक है। इस मंदिर में नवरात्र के समय बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। जैन मंदिर पावागढ़ हिल्स पर जैन मंदिर भी बने हुए हैं। कहते हैं ये मंदिर 13वीं-14वीं सेंचुरी के हैं। किसी समय में गुजरात में जैन धर्म का बड़ा प्रभाव था। लोगों में इन मंदिरों की बड़ी मान्यता है।

कुनिया महादेव वाटर फॉल

अगर आपको ट्रैकिंग पसंद है तो यहां नजदीक ही एक खूबसूरत वाटरफॉल भी मौजूद है, जिसका नाम कुनिया महादेव है। यह बरसात के मौसम में बहुत खूबसूरत नजर आता है। जंगल के बीचों-बीच ऊंचाई से गिरता पानी सभी को आकर्षित करता है। बस आपको लगभग 1 घंटे की ट्रैकिंग करके जंगल में अंदर जाना होगा।

कैसे और कब जाएं?

चांपानेर बडोदरा से करीब 45 किमी की दूरी पर स्थित है। आप यहां यानी बडोदरा से कार या टैक्सी बुक कर जा सकते हैं। यहां के लिए बसें भी चलती हैं। अक्टूबर से मार्च का समय यहां आने के लिए सबसे उत्तम माना जाता है।

 

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