संजय सक्सेना,लखनऊ: समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता और रामपुर से विधायक आजम खान की लंबी कानूनी जद्दोजहद के बाद रिहाई ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नई हलचल पैदा कर दी है। आजम खान अब समाजवादी नहीं रहेंगे,इसको लेकर भी चर्चा तेज है, हालांकि सपा प्रमुख अखिलेश यादव की ओर से इस पर अब तक कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन सपा के वरिष्ठ नेता शिवपाल सिंह यादव ने आजम की रिहाई के बाद इटावा में पत्रकारों से बातचीत करते हुए इस पूरे घटनाक्रम पर बयान दिया। उन्होंने साफ कहा कि आजम खान समाजवादी पार्टी के साथ ही बने रहेंगे और किसी अन्य दल में नहीं जाएंगे। यह बयान उस समय अहम माना जा रहा है जब पार्टी के भीतर खींचतान और बदलते समीकरणों पर लगातार चर्चा होती रही है।
आजम खान पिछले कई महीनों से कानूनी मामलों के चलते जेल में बंद थे। रामपुर से लेकर लखनऊ और सुप्रीम कोर्ट तक उनकी कानूनी लड़ाई चर्चा में रही। उन्हें सपा का अहम मुस्लिम चेहरा माना जाता है, जिनकी पकड़ सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक ही सीमित नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में मुस्लिम जनमानस पर असर डालती है। उनकी रिहाई के बाद अनुमान लगाया जा रहा था कि क्या वे किसी नए सियासी रास्ते की तलाश करेंगे। मगर शिवपाल सिंह यादव के बयान ने इस अटकल पर रोक लगाने की कोशिश की है। शिवपाल ने कहा कि आजम खान सपा की विरासत का अहम हिस्सा रहे हैं और आगे भी रहेंगे। उनके मुताबिक आजम खान जैसे साथी को पार्टी कभी छोड़ नहीं सकती और न ही वे पार्टी को छोड़ेंगे।
आज़म खान जैसे वरिष्ठ नेता की रिहाई पर जहां कई सपा कार्यकर्ता और स्थानीय नेता अपनी प्रतिक्रिया दे चुके हैं, वहीं अखिलेश यादव की खामोशी राजनीति के गलियारों में अलग ही चर्चा का विषय बनी हुई है। विपक्षी दलों के नेता इसे सपा के अंदरूनी असंतोष की तरफ इशारा मान रहे हैं। भाजपा और बसपा खेमे में यह चर्चा है कि अखिलेश कहीं आजम खान के बढ़ते असर को लेकर सतर्क तो नहीं हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश यादव की चुप्पी एक रणनीति का हिस्सा हो सकती है। वे ऐसे वक्त पर बयान देना चाहते होंगे जब राजनीतिक माहौल उनके पक्ष में हो। आजम खान का नाम हमेशा सपा की मुस्लिम राजनीति के केंद्र में रहा है। वे पार्टी के संस्थापकों में से एक माने जाते हैं और समाजवादी आंदोलन से गहराई से जुड़े हुए हैं। मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव तक, हर दौर में उनकी भूमिका अहम रही। यही कारण है कि उनकी रिहाई न सिर्फ सपा के कार्यकर्ताओं के लिए राहत की खबर है, बल्कि आने वाले चुनावी समीकरणों पर भी असर डाल सकती है। शिवपाल यादव का बयान संकेत देता है कि वे आजम खान के जरिए मुस्लिम वोटबैंक को बिखरने से बचाना चाहते हैं। उन्होंने यह संदेश देने की भी कोशिश की है कि आजम जैसे नेता पार्टी से नाराज नहीं हैं और वे सपा के साथ बने रहेंगे।
रामपुर, जिसे ‘मिनी पाकिस्तान’ भी कहा जाता है, हमेशा से आजम खान का गढ़ रहा है। वहां की राजनीति में उनकी पकड़ इतनी मजबूत रही है कि विरोधी दलों के लिए वहां पैर जमाना हमेशा मुश्किल रहा है। उनकी रिहाई से रामपुर में सियासत का समीकरण फिर से बदल सकता है। साथ ही, पश्चिमी यूपी में जहां पर सपा और रालोद का गठबंधन मुस्लिम-जाट एकता पर आधारित होता है, वहां आजम खान की सक्रियता चुनावी नतीजों पर सीधे असर डाल सकती है। आजम खान को लेकर भाजपा का रुख अब तक आक्रामक रहा है। कानूनी कार्रवाइयों में उनकी मुश्किलें बढ़ाने वाले ज्यादातर कदम भाजपा सरकार के कार्यकाल में ही उठे। लेकिन अब उनकी रिहाई के बाद भाजपा यह कोशिश करेगी कि वे एक सीमित राजनीति तक ही सिमटकर रह जाएं। वहीं कांग्रेस और बसपा भी मुस्लिम वोटरों को अपने पाले में खींचने की कवायद करती रही हैं। ऐेसे में सपा के लिए यह जरूरी होगा कि आजम खान पार्टी के भीतर सक्रिय बनाए रखें और उनका असंतोष बाहर न झलके।
बहरहाल, शिवपाल यादव का यह कहना कि आजम खान पार्टी नहीं छोड़ेंगे, सपा की एकजुटता को दिखाने का प्रयास है। मगर ध्यान देने वाली बात यह है कि हाल के वर्षों में सपा और आजम खान के बीच विश्वास का माहौल कमजोर पड़ा है। कई बार ऐसी रिपोर्टें आईं कि वे पार्टी नेतृत्व से नाराज हैं। उनकी चुप्पी और दूरी बनाने की रणनीति को इसी नजरिए से देखा जाता रहा है। अब जब शिवपाल सार्वजनिक तौर पर यह दावा कर रहे हैं कि उनका पार्टी से बाहर जाने का सवाल ही नहीं उठता, यह संदेश कार्यकर्ताओं के बीच उत्साह भरने का भी प्रयास है। इसके साथ ही यह ऐलान अखिलेश यादव के नेतृत्व को मजबूत करने और मुस्लिम वोट बैंक को सपा के साथ बनाए रखने का भी हिस्सा माना जा सकता है।
कुल मिलाकर, आजम खान की रिहाई ने सपा की राजनीति में नये सिरे से हलचल पैदा कर दी है। अखिलेश यादव की खामोशी और शिवपाल यादव की सक्रियता इस बात का संकेत देती है कि पार्टी फिलहाल अंदरूनी असंतोष को सार्वजनिक विवाद बनने से रोकना चाहती है। आने वाले दिनों में यह देखना रोचक होगा कि आजम खान अपनी रिहाई के बाद किस तरह की राजनीतिक भूमिका निभाते हैं और क्या अखिलेश यादव इस मुद्दे पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया देकर अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को एकजुट करने का प्रयास करेंगे।