राघवेंद्र प्रताप सिंह
लखनऊ : आज श्रमिक दिवस है। श्रमिकों के अधिकार , उनके सम्मान और गौरव का दिन। पत्रकारिता जगत में कार्यरत सभी वर्ग के लोग भी आज के दिवस से सम्बद्ध हैं… आइए बाकी संगठित श्रमिकों से इतर मीडिया श्रमिकों की बात कर ली जाए। आज सुबह से पत्रकार हितों के अनेकों मुद्दे हर वर्ष की भांति मंचों से हवा में उछल रहे हैं। …. सुनकर प्रतीत हो रहा है कि हमारे अस्तित्व में आने से पहले हमारे वरिष्ठों ने पत्रकारिता हित में बड़े पापड़ बेले हैं। लेकिन यह क्या ये तो पत्रकारिता में आज बड़ी गिरावट भी बता रहे हैं। फिर किस बात का मीडिया व मीडिया के साथियों के लिए संघर्ष साहेब ? आए दिन मीडियाकर्मियों के साथ होने वाले अपमानजनक व्यवहार पर निर्लज्ज सी खामोशी ओढने वाले ये वरिष्ठ किस अधिकार से पत्रकारों के हितों के सवाल उठाते हैं ? … और गुटों व एजेंडों में सेट पत्रकार भी किस बात के लिए आज के दिवस को अपने से जोडते है?
लखनऊ में ही लगातार मीडियाकर्मिंयों के साथ नेताओं व विभागीय अफसरों ने अभद्रता की। मेरे एक सवाल पूछने पर अखिलेश यादव जी पत्रकार की हैसियत बताने लगते हैं और उस वक्त पूरे हाल में बैठे मेरे पत्रकार साथियों के दिल से पत्रकारिता के कथित स्वाभिमान की आवाज तक नहीं निकली। कल ही कि तो बात है कांग्रेस की ओर से लखनऊ लोकसभा प्रत्याशी आचार्य जी एक महिला पत्रकार से अभद्रता कर बैठे, आज मंचों से हम जैसे नौसिखियों को संबोधित करने वाले वरिष्ठों ने क्या कदम उठाया…? कुछ दिन पहले बीजेपी के एक नेता ने एक पत्रकार को उसके मालिक से बात कर लेने की बात की …क्या हुआ ..? अभी हाल ही में कलेक्ट्रेट परिसर में एक वरिष्ठ छायाकार पत्रकार साथी के साथ पुलिसकर्मियों द्वारा अभद्रता की गई… क्या हुआ…?
किसी संगठन ने आवाज उठाई ..? करीब एक साल हुए परिवहन विभाग के कुछ लोगों ने दो पत्रकारों पर हमला किया , इसमें एक घटना आरटीओ ऑफिस, ट्रांसपोर्ट नगर की थी और दूसरी आलमबाग बस अड्डे की, ….कोई पत्रकार नेता क्यों खड़ा नहीं हुआ? क्या पत्रकारों का बैनर व उनकी हैसियत देखकर विरोध की रूपरेखा तय होती है ? दरअसल ये बयानबाजी और भाषणबाजी मंच से ही स्वयं को अच्छी लगती होंगी। खैर फिलहाल श्रमिक दिवस की आप सभी को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें….!
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