ऐसा समुद्री तट जिसकी रेत सफ़ेद होती है, ऐसे तट पर बहुत से पर्यटकों को घूमना बेहद पसंद आता है| इस तरह के समुद्री तट अपने आप तैयार नई होते है, इस तरह के तट को समुद्री जंतु जिसे तोता मछली कहते है| इस मछली का मुंह तोते की तरह नुकीला होता है। इन्ही कारण इन्हें तोता मछली नाम से जाना जाता है।
पर्ल एक्वाकल्चर क्षेत्र के विख्यात वैज्ञानिक डॉ. अजय सोनकर के मुताबिक, पैरेट फिश प्रमुख रूप से उन्हीं क्षेत्रों में पाई जाती हैं, जहां समुद्र तल में मूंगे के पहाड़ होते हैं। विश्व में जितने भी सफेद रेत कण वाले समुद्री तट मिलते हैं, वह सब इसी मछली द्वारा बनाए गए हैं। सुनामी की घटना के बाद अंडमान प्रशासन ने समुद्र तल में आए परिवर्तन का अध्ययन करने के लिए एक शोध दल बनाया और उस दौरान यह पता चला कि कोई ऐसा समुद्री जीव है जो सीपों को मार रहा है।
इस के बाद समुद्र के अंदर कुछ कुछ जगह पर कैमरे लगाए गए जिससे जानकारी मिली की पैरेट फिश ही अपने स्वभाव के विपरीत इन सीपों की मृत्यु के लिए जिम्मेदार है। सामान्यता पैरेट फिश सीपों से सम्बंधित प्रजाति ही मानी जाती हैं और मूंगे के पहाड़ वाले स्थानों पर सीपों के संग ही पाई जाती हैं। पैरेट फिश के व्यवहार में आया यह बदलाव विचार करने योग्य था।
डॉ. अजय ने बताया कि पैरेट फिश मूंगे की सतह को निकलकर गले में लेकर उसे पीसती हैं और सीप के कैल्शियम से बने सतह पर चिपके एल्गी को अलग कर उसे खा लेती हैं। शेष बचे हिस्से को अपने गलफड़े से बाहर निकाल देती हैं, जिसके कारण काफी समय के बाद सफेद रेत कण का समुद्री तट अस्तित्व में आ जाता है। सुनामी के पश्चात समुद्र तल में जैम चुके रेत कणों के ऊपर की तरफ आने से मूंगे के पर्वत दब गए और पैरेट फिश के लिए भोजन का संकट हो सकता है। इस कारण उसने सीप के कैल्शियम कवच के ऊपर चिपके एल्गी को खाने के लिए इन सीपों को मारना शुरू करना पड़ता है । उन्होंने कहा कि सामान्य तौर पर एक पैरेट फिश साल भर में साढ़े चार से पांच किलोग्राम रेत पैदा करती हैं।
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