‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का पैगाम लेकर अपने देश रवाना हुए 13 देशों के बाल प्रतिनिधि

सीएमएस में आयोजित एक माह का ‘अन्तर्राष्ट्रीय बाल शिविर’ सम्पन्न

लखनऊ : सिटी मोन्टेसरी स्कूल की मेजबानी में आयोजित एक माह के अन्तर्राष्ट्रीय बाल शिविर में पधारे ब्राजील, कैनडा, कोस्टारिका, डेनमार्क, फ्राँस, जर्मनी, इटली, मैक्सिको, नार्वे, स्वीडन, थाईलैण्ड, अमेरिका एवं भारत के बाल प्रतिनिधि लखनऊ में अपने एक माह के प्रवास के उपरान्त ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का पैगाम लेकर सुखद अनुभूतियों के साथ अपने-अपने देशों को रवाना हो गये। चार सप्ताह के इस अन्तर्राष्ट्रीय बाल शिविर ‘पीस हैज ए 100 नेम्स विलेज’ के दौरान इन बाल प्रतिनिधियों ने सहयोग, सहकार, सद्भाव, विश्व बन्धुत्व, आपसी भाईचारा, मैत्री, प्रेम, एकता व शान्ति का प्रशिक्षण प्राप्त किया एवं साथ ही साथ भारत की अनूठी संस्कृति, सभ्यता व वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से भी रूबरू हुए जिनका सुखद अहसास जीवन भर इन बच्चों के साथ रहेगा।

शिविर के समापन के अवसर पर अन्तर्राष्ट्रीय बाल शिविर (सी.आई.एस.वी.) इण्डिया चैप्टर के प्रेसीडेन्ट एवं सी.एम.एस. संस्थापक व प्रख्यात शिक्षाविद् डा. जगदीश गाँधी ने विभिन्न देशों से पधारे इन नन्हें-मुन्हें बाल प्रतिनिधियों को भावभीनी विदाई दी। इस अवसर पर डा. गाँधी ने कहा कि विभिन्न देशों के इन नन्हें-मुन्हें बच्चों ने अन्तर्राष्ट्रीय बाल शिविर में अपने प्रवास के दौरान एक ‘नवीन विश्व व्यवस्था’ एवं ‘विश्व एक परिवार’ की अवधारणा को नया आयाम दिया। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि 13 देशों से पधारे ये सभी बाल मेहमान भारतीय संस्कृति व सभ्यता के आदर्श ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का संदेश सारे विश्व में प्रचारित-प्रवाहित करेंगे।

सी.एम.एस. के मुख्य जन-सम्पर्क अधिकारी हरि ओम शर्मा ने बताया कि सी.एम.एस. की मेजबानी में आयोजित एक माह का 27वाँ ‘अन्तर्राष्ट्रीय बाल शिविर’ सम्पन्न हो गया, जिसमें विश्व के 13 देशों के 11 वर्ष से 12 वर्ष की आयु के बच्चों ने एक साथ एक ही छत के नीचे साथ-साथ रहकर विश्व परिवार का अनूठा अहसास कराया। श्री शर्मा ने बताया कि इंग्लैण्ड की चिन्ड्रेन्स इन्टरनेशनल समर विलेज संस्था (सी.आई.एस.वी.) के तत्वावधान में विश्व के अलग-अलग देशों में इस प्रकार के अन्तर्राष्ट्रीय बाल शिविरों का आयोजन किया जाता है एवं इसी कड़ी में सी.एम.एस. की मेजबानी में 27वें अन्तर्राष्ट्रीय बाल शिविर का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य विभिन्न संस्कृति, भाषा, सभ्यता, रीति-रिवाज में पले-बढ़े नन्हें-मुन्हें बच्चों के कोमल हृदयों में आपसी भाईचारा, विश्व शांति तथा विश्व बन्धुत्व की भावना का समावेश करना था।

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