1857 में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने औरैया की तहसील को दिलाई थी अंग्रेजों से मुक्ति

औरैया : सन 1857 के गदर में जिले के आजादी के दीवाने पीछे नहीं रहे हैं। यहां के सपूतों ने सिर पर कफन बांधकर अंग्रेजों हुकूमत से लोहा लिया। भरेह और चकरनगर के राजाओं ने क्रांति में एक साथ कूदकर अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे। चकरनगर के राजा कुंवर निरंजन सिंह और भरेह के राजा रूप सिंह ने 1857 की क्रांति में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। चकरनगर के राजा ने अंग्रेजों की बढ़ती गतिविधियों पर सिकरौली के राव हरेंद्र सिंह से मिलकर इटावा में अंग्रेजों के वफादार कुंवर जोरसिंह व सरकारी अधिकारियों को हटाने की मुहिम छेड़ दी थी। दोनों ही राजाओं ने झांसी की रानी को समर्थन देकर अंग्रेजों को खुली चुनौती दी। राजा भरेह कुं. रूप सिंह ने शेरगढ़ घाट पर नावों का पुल बनवाया। इस कार्य में निरंजन सिंह सहित क्रांतिकारी जमीदारों ने उनका साथ दिया। झांसी के क्रांतिकारियों ने शेरगढ़ घाट से यमुना नदी पार कर 24 जून 1857 को औरैया तहसील पर धावा बोल दिया था।

1857 की क्रांति के बारे में भारत प्रेरणा मंच (क्रांतिकारियों के लिए काम करने वाली संस्था) के अध्यक्ष अजय अंजाम ने बताया कि कई बार अंग्रेजी सिपाहियों से भरेह व चकरनगर के राजाओं के बीच लड़ाई हुई। अगस्त 1857 के आखिरी सप्ताह में अंग्रेजी फौज 18 पाउंड की तोपें लेकर व्यापारियों की नावों से यमुना नदी के रास्ते भरेह पहुंची और राजा के किले पर हमला किया। राजा रूप सिंह पहले ही अंग्रेजी सरकार के मंसूबों को भांप चुके थे। उन्होंने किला पहले ही खाली कर दिया था। 5 सितंबर को अंग्रेजी फौज ने भरेह के किले को तहस नहस कर दिया।

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