
कांग्रेस नेताओं की मुश्किलें
न्यूज़ 18 ने कई नेताओं से बातचीत की लेकिन वो सामने आ कर कुछ भी नहीं कहना चाहते हैं. कांग्रेस के कई नेताओं का कहना है कि पीएम मोदी की लोकप्रितया के चलते इनके लिए लोकसभा के अगले चुनाव में जीतना मुश्किल चुनौती होगी. इन सबका कहना है कि 2024 लोकसभा चुनाव तक हालात बदल सकते हैं. अयोध्या में तब तक राम मंदिर का निर्माण हो जाएगा. इसके अलावा अगले चार सालों में देश की इकॉनमी भी पटरी पर लौट सकती है. साथ ही कई और चीज़े बेहतर हो सकती है. यानी कांग्रेस को जनता के बीच मुद्दों को भुनाने का मौका नहीं मिलेगा.
मुश्किल में जितिन प्रसाद
जितिन प्रसाद कभी गांधी परिवार के पसंदीदा नेता थे. लेकिन अब तस्वीर बदल गई है. जिन 23 असंतुष्ट नेताओं ने चिट्ठी लिखी थी उनमें प्रसाद का भी नाम था. प्रसाद की नजर अब ब्राह्मण समाज के 12 % वोट पर है. इसके लिए उन्होंने ब्राह्मण समाज परिधान की शुरूआत की है. जितिन प्रसाद की गांधी परिवार से तकरार उस वक्त बढ़ी जब उन्होंने लखनऊ से चुनाव लड़ने से मना कर दिया. प्रियंका गांधी चाहती थी कि वो वहां से चुनाव लड़े. कांग्रेस में प्रसाद भविष्य अंधेरों में दिख रहा है. दरअसल आराधना मिश्रा और अजय कुमार लल्लू जैसे नए नेता रेस में उनसे आगे चल रहे हैं. बसपा, सपा और भाजपा में वो जाने के मूड में नहीं हैं. ऐसे में ब्राह्मण कार्ड खेल कर कांग्रेस में अपनी पहचान बना सकते हैं.
क्या होगा मिलिंद देवड़ा का?
मिलिंद देवड़ा ,राहुल के बेहद करीबी नेताओं में से एक थे. वो राहुल गांधी के NRI से मिलने वाले कार्यक्रम के दौरान उनके साथ विदेश दौरे पर भी गए थे. मुंबई में पार्टी प्रमुख के पद से इस्तीफा देने के बाद से देवड़ा इन दिनों कहीं नहीं हैं. अटकलों के विपरीत, देवड़ा ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव नहीं लड़ा और अपनी पार्टी के लिए डटे रहे. आगे वो क्या करेंगे इसको लेकर तस्वीरें साफ नहीं है. एनसीपी और शिवसेना विकल्प हैं, लेकिन एनसीपी में पहले से ही पारिवारिक मतभेद चल रहे हैं. देवड़ा के सभी दलों के साथ अच्छे संबंध हैं. अगर वह 2024 में चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं, तो उनके पास कई विकल्प हो सकते हैं.
कार्ति चिदंबरम की मुश्किलें
कार्ति चिदंबरम ने लोकसभा में डेब्यू कर लिया है. लेकिन क्या वो अपने पिता के दम पर शिवगंगा से अगला चुनाव जीतेंगे या नहीं इस बात को गांरटी नहीं है. कांग्रेस से जीतना कठिन हो सकता है लेकिन DMK, BJP या AIADMK में शामिल होने का विकल्प भी उनके सामने नहीं है. कांग्रेस के पास दक्षिण में कोई पहचान नहीं बची है. भाजपा ने अधिकांश क्षेत्रीय दलों को ये संदेश दे दिया है कि अगर आप हमारे साथ नहीं हैं, तो यह ठीक है, लेकिन आप कांग्रेस के साथ भी नहीं जा सकते हैं.
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