स्वक्ष समाज पर केलकर सिंह के विचार : बहुत ही मुश्किल काम, ईमानदारी से काम करने का सोचना भी रूह कंपाने वाला है। खर्चे इतने बढ़े हुए हैं कि अब पीछे लौटना मुश्किल है । अब तो जेल जाने पर ही इस बुरी लत से छुटकारा मिलेगा, क्योंकि रईसी नस नस में समाई है ।पहले तो कुछ शर्म लगती थी पर अब बेहयाई पे उतर आए हैं। अब अगले के फायदे के एवज में हिस्सा चाहिए जैसे प्रॉपर्टी अपने बाप की हो। हमें चाहिए ही चाहिए भले ही जेवर बिके उसके घर में चूल्हा न जले कोई मतलब नहीं। कोई अपना सिफारिश कर दे तो लगता है उसने कुछ छीन लिया।
सोचें .. हमारे साथ अप्रिय घटना हो गयी तो —शेष जीवन जिंदा लाश
—सामाजिक स्तर शून्य
वही जो काली कमाई में शामिल थे अब हिकारत से देखेंगे।हमारे जैसे ही हम पर जुमले कसेंगे।
तो क्यों न शुरू करें-
-हरिश्चंद्र न बन सकें तो जालिम भी न बनें ।
-शुरुआत एक माह दो माह के व्रत से करें।
-बाजार लगाना बंद करें।
-आप इतने सामर्थ्यवान कभी नहीं हो सकते कि सब कुछ नियंत्रित कर सकें इसलिए कुछ निर्णय ऊपर वाले पर छोड़ें।
-हम पहले से ही लाखों में एक हैं ईश्वर ने हर व्यक्ति को यह अवसर नहीं दिया है ।
-दिल बड़ा करें और दुनिया की चकाचौंध से प्रभावित न हों।
हम अपने विभाग के कुछ बेहद ईमानदार अधिकारियों/कर्मचारियों का ह्रदय से अभिनन्दन करते हैं।
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