नेपाल के संसद से पारित ऊर्जा विधेयक को कैबिनेट ने वापस लेने का लिया निर्णय, भारत को लक्षित कर निर्णय लिए जाने की आशंका

काठमांडू : जिस समय दिल्ली में नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के भ्रमण की तैयारी चल रही है, उसी समय काठमांडू में प्रधानमंत्री ओली ने कैबिनेट बैठक से ही ऊर्जा विधेयक को वापस लेने का निर्णय कर भारत के साथ हुए 10 हजार मेगावाट बिजली समझौते को प्रभावित करने वाला निर्णय लिया है। कैबिनेट ने यह निर्णय ऐसे समय लिया है जब इसे संसद के दोनों सदन से बहुमत से पारित कर दिया गया है।

गत शुक्रवार को प्रधानमंत्री ओली की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में प्रधानमंत्री ने नेपाल के संसद के दोनों सदनों से पारित ऊर्जा संबंधी एक विधेयक को राष्ट्रपति के पास अनुमोदन के लिए भेजने के बजाय उसे वापस लेने का निर्णय किया है। ऊर्जा संबंधी इस विधेयक को पुष्प कमल दहाल की पिछली सरकार के द्वारा तैयार किया गया था, जिसे ओली के नेतृत्व में बनी कांग्रेस एमाले की सरकार के समय संसद के दोनों सदनों से पारित किया गया था।

कैबिनेट बैठक में सहभागी एक मंत्री के मुताबिक इस विधेयक के कुछ प्रावधान को लेकर प्रधानमंत्री ओली ने अपनी आपत्ति दर्ज की थी। शुक्रवार को हुई कैबिनेट बैठक ने प्रधानमंत्री ने करीब डेढ़ घंटे तक इस विधेयक के कुछ अनुच्छेद को राष्ट्र विरोधी करार देते हुए विभागीय मंत्री से सवाल जवाब करते रहे। इस बारे में जब ऊर्जा मंत्री दीपक खड़का से प्रतिक्रिया लेते ने की कोशिश की गई तो उन्होंने बस इतना कहा कि प्रधानमंत्री ने इस पर पुनर्विचार करने की बात कही है। इससे अधिक उन्होंने कोई भी प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया।

कैबिनेट बैठक में सहभागी एक मंत्री ने दावा किया है कि ऊर्जा विधेयक को पुनर्विचार करने के लिए फिर से प्रतिनिधि सभा में भेजने का निर्णय किया गया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने नेपाल के ऊर्जा क्षेत्र में भारत की मोनोपली होने, भारत के द्वारा निर्माण किए जा रहे और भविष्य में निर्माण होने वाले सभी बड़े हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट की सुरक्षा भारत सरकार के हाथ में होने और भारा द्वारा नेपाल के तीसरे देश के निवेश से बनने वाले हाइड्रोपावर से बिजली नहीं खरीदने जैसी शर्तों पर अपनी आपत्ति जताई है।

नेपाल की ओली सरकार के द्वारा यह फैसला लिए जाने का सीधा असर दोनों देशों के बीच हुए 10 हजार मेगावाट बिजली निर्यात को प्रभावित करेगा। जानकार मानते हैं कि प्रधानमंत्री ओली ने भारत को चिढ़ाने के लिए जानबूझ कर यह फैसला लिया है ताकि भारत भ्रमण के दौरान वह अपनी बार्गेनिंग पावर को बढ़ा सके। नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय के अधिकारी नेपाली दूतावास के साथ मिल कर ओली के भारत भ्रमण के लिए विभिन्न एजेंडे पर चर्चा कर रहे हैं। संभवतः जुलाई के आखिरी सप्ताह में ओली के भारत भ्रमण की तैयारी की जा रही है ऐसे में नेपाल के तरफ से इस तरह का राजनीतिक फैसला उनके भ्रमण पर असर पड़ सकता है।

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