आज यानी सोमवार को नारद जयंती है. आप सभी को बता दें कि नारद जयंती हर साल हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि पर मनाते हैं और नारद मुनि भगवान विष्णु के अनन्य भक्त है उनके हर एक रोम में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी बसती हैं. कहा जाता है नारद मुनि के पिता ब्रह्राजी है और नारद मुनि हमेशा तीनो लोकों में भ्रमणकर सूचनाओं का आदान-प्रदान करते थे. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं आखिर क्यों नारद जी रहे थे अविवाहित और आखिर क्यों नहीं टिक पाते वह एक ही जगह पर. आइए जानते हैं इस बारे में.
पिता के श्राप से रहे अविवाहित – शास्त्रों के अनुसार ब्रह्रााजी ने नारद जी से सृष्टि के कामों में हिस्सा लेने और विवाह करने के लिए कहा, लेकिन नारद जी ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करने से मना कर दिया. तब क्रोध में ब्रह्रााजी ने देवर्षि नारद को आजीवन अविवाहित रहने का श्राप दे डाला.
एक जगह क्यों नहीं टिक पाते थे नारद मुनि – मान्याता है कि अनुसार देवर्षि नारद सृष्टि पहले ऐसे संदेश वाहक यानी पत्रकार थे जो एक लोक से दूसरे लोक की परिक्रमा करते हुए सूचनाओं का आदान-प्रदान किया करते थे. वह हमेशा तीनों लोकों में इधर-उधर भटकते ही रहते थे.
उनकी इस आदत के पीछे भी कथा है. दरअसल राजा दक्ष की पत्नी आसक्ति से 10 हजार पुत्रों का जन्म हुआ था लेकिन नारद जी ने सभी 10 हजार पुत्रों को मोक्ष की शिक्षा देकर राजपाठ से वंचित कर दिया था. इस बात से नाराज होकर राजा दक्ष ने नारद जी को श्राप दे दिया कि वह हमेशा इधर-उधर भटकते रहेंगे और एक स्थान पर ज्यादा समय तक नहीं टिक पाएंगे.
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