भारत की आंतरिक कमजोरियों की पड़ताल करना आचार्य शत्रुघ्न प्रसाद की चिंता के केन्द्र में था : आरिफ मोहम्मद खान

पटना : राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि भारत की आंतरिक कमजोरियों की पड़ताल करना आचार्य शत्रुघ्न प्रसाद की चिंता के केन्द्र में था। उन्होंने कहा कि साहित्यकार के लिए कल्पना शक्ति होना अति आवश्यक होता है।

ये बातें राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने रविवार को पटना स्थित बिहार विधान परिषद सभागार में आचार्य शत्रुघ्न प्रसाद शोध संस्थान द्वारा आयोजित व्याख्यानमाला में कहीं। उन्होंने कहा कि हमारे यहां रामायण और महाभारत को महाकाव्य माना गया है। उन्होंने शत्रुघ्न प्रसाद के बारे में कहा कि ऐतिहासिक उपन्यासकार आचार्य शत्रुघ्न प्रसाद के सभी उपन्यासों में भारत के आंतरिक कमजोरियों और उसके कारणों की पड़ताल है। उनके उपन्यासों में इस बात के लिए चिंता दिखाई पड़ती हैं कि जब- जब भारत अंदर से कमजोर हुआ, तब बाहरी आक्रांताओं ने भारत को पराजित कर दिया।

‘श्रावस्ती का विजय पर्व’ और ‘भवभूति: कृतित्व, कला दर्शन’ विषयक दो सत्रों में हुए इस कार्यक्रम में राज्यपाल ने कहा कि ‘श्रावस्ती का विजय पर्व’ उपन्यास में इस बात का उल्लेख किया गया कि कैसे राजा सुहेलदेव ने एक बार बाहरी आक्रमणकारियों को पराजित किया, तो लगभग दो सौ वर्षों तक बाहरी आक्रमणकारी भारत आने की हिम्मत नहीं जुटा सके। आचार्य शत्रुघ्न प्रसाद भारत को अन्दर से मजबूत करना चाहते थे।

उद्घाटन सत्र में बिहार विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह ने आचार्य जी के साथ बीते दिनों को याद किया। उन्होंने बताया कि कैसे वे हमेशा समाज और राष्ट्र के लिए चिंतित रहते थे। उन्होंने कहा कि साहित्यकार हमारे देश की संस्कृति को आगे बढ़ाते है और सबके लिए आदर्श बन जाते हैं। साहित्यकार और भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी रणेन्द्र कुमार ने भवभूति के बारे में बताया कि उनके नाटकों में करुण रस की प्रधानता है। उनका ‘उत्तररामचरित’ नाटक रामायण के उत्तरकांड पर आधारित है, जो राम और सीता के जीवन के बाद के हिस्सों, विशेष रूप से सीता के त्याग और पुनर्मिलन पर केंद्रित है।

कार्यक्रम के प्रथम सत्र में महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के सह आचार्य डॉ. अंजनी श्रीवास्तव ने कहा कि शत्रुघ्न प्रसाद की रचनाएं भारतबोध का विमर्श निर्मित करती हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी के आचार्य डॉ. अशोक कुमार ज्योति ने अपने वक्तव्य में उपन्यास में न्यस्त विनोद और परिहास के संदर्भों के शिल्प-वैशिष्ट्य का रेखांकन किया। वहीं, वरिष्ठ पत्रकार राकेश प्रवीर ने उपन्यास को समाज जागृत का विषय बताया।

कार्यक्रम का दूसरा सत्र ‘भवभूति: कृतित्व, कला और दर्शन’ पर केंद्रित था। इस सत्र में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में विभागाध्यक्ष रहे प्रो. मनुलता ने बताया कि भवभूति ज्ञान, मीमांसा और शास्त्रों के महान ज्ञाता थे। अपने नाटकों के माध्यम से उन्होंने जिन नैतिक आदर्शों, विचारों और मर्यादा को अभिव्यक्त किया है वे आज हमारे लिए अधिक प्रासंगिक हैं।

बीएचयू के ही प्रो. रहे सदानंद शाही ने बताया कि भवभूति अपने अनुभूत सत्य को कहने के साहस के कवि हैं। भवभूति चले आ रहे समाज के संविधान से अलग अपनी बात कहते हैं। वहीं, प्रो. अवधेश प्रधान ने भवभूति के नाटक में कला पक्ष को रेखांकित किया। इस कार्यक्रम के संयोजक प्रो आनंद प्रसाद गुप्ता थे जबकि सत्र का संचालन शोध संस्थान के महासचिव डॉ अरुण कुमार ने किया।

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