बिहार चुनाव : ओवैसी से समझौता न करना महागठबंधन को पड़ा भारी!

पटना : बिहार में एक बार फिर नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार की जोड़ी सुपरहिट हो गई है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को प्रचंड बहुमत मिला है। वहीं, तीसरी ताकत के रूप में पूरा जोर लगाने वाले प्रशांत किशोर (पीके) का खाता भी नहीं खुला। दिलचस्प यह है कि बिहार चुनाव में पीके से कम चर्चित रहे असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) 5 और मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) 1 सीट जीतने में सफल रही।

 

बिहार विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने सीमांचल क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन किया है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने पांच सीटों पर आसान जीत दर्ज की और महागठबंधन को भारी नुकसान पहुंचाया। एआईएमआईएम के अध्यक्ष और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कुल 25 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। इनमें से 23 मुस्लिम उम्मीदवार थे। एआईएमआईएम मुख्य रूप से मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र (किशनगंज, अररिया, पूर्णिया, कटिहार) में चुनाव लड़ रही थी।

 

एआईएमआईएम की ओर से जोकीहाट सीट से मोहम्मद मुर्शिद आलम, बहादुरगंज सीट से मो. तौसीफ आलम, कोचाधामन से मो. सरवर आलम, अमौर से अखतरुल ईमान और बायसी सीट से गुलाम सरवर ने जीत का परचम लहराया। एआईएमआईएम को कुल 9 लाख 30 हजार 504 (1.85 फीसदी) वोट मिले, जबकि राजद को 23 प्रतिशत वोट मिले हैं।

 

जोकीहाट विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने दूसरी बार बड़े-बड़े दिग्गजों को पटकनी देकर शानदार जीत दर्ज कर राजनीतिक गलियारों में सनसनी फैला दी है। चुनावी मैदान में तीन पूर्व मंत्रियों को मुर्शिद आलम ने धूल चटा दी। मैदान में महागठबंधन के उम्मीदवार पूर्व मंत्री शाहनवाज आलम, पूर्व सांसद और जनसुराज के उम्मीदवार सरफराज आलम व जदयू से पूर्व मंत्री शाहनवाज आलम डटे थे, लेकिन ओवैसी फैक्टर ने मुस्लिम मतदाताओं का ध्रुवीकरण कर सबों की मंशा पर पानी फेर दिया।

 

राजनीतिक विश्लेषक के.पी. त्रिपाठी कहते हैं कि ओवैसी ने सीमांचल की कई सीटों पर मजबूत मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, जिससे सीधा मुकाबला हुआ। एआईएमआईएम ने मुस्लिम वोटों का एक बड़ा हिस्सा अपनी ओर खींच लिया, जिससे कई सीटों पर महागठबंधन के उम्मीदवार राजग के प्रत्याशियों के मुकाबले पिछड़ गए। एआईएमआईएम ने सीमांचल में अपनी गहरी पैठ बना ली है, यह समझने में महागठबंधन के रणनीतिकार चूके। कई सीटों पर एआईएमआईएम, राजद और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय मुकाबला देखने को मिला। इसका सीधा फायदा राजग को मिला।

 

राजनीतिक व टिप्पणीकार सुशील शुक्ल कहते हैं कि राजद ने एआईएमआईएम के सभी विधायकों को तोड़ कर अपने साथ मिला लिया था, इससे पार्टी की साख खराब हुई थी। ओवैसी की पार्टी ने पांच साल जमीन पर मेहनत की और इस चुनाव में आखिरकार अपना बदला चुका लिया। यह प्रदर्शन तेजस्वी की उस रणनीति पर सवाल खड़े करता है,जिसके तहत महागठबंधन ने एआईएमआईएम को किनारे कर दिया था। जनसुराज की गतिविधियों का लाभ भी सीमांचल में ओवैसी के उम्मीदवारों को ही मिल गया।

 

2020 के बिहार चुनाव में भी ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के 5 प्रत्याशी जीते थे। चुनाव बाद अख्तरुल ईमान को छोड़कर बाकी के चार विधायक राजद में शामिल हो गए थे। 2020 के चुनाव में एआईएमआईएम ने अमौर, बहादुरगंज, बायसी, जोकीहाट और कोचाधामन सीट पर जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में एआईएमआईएम को 1.24 प्रतिशत मत मिला था, जबकि राजद के पक्ष में 23.11 प्रतिशत वोटिंग हुई थी।

 

गौरतलब है कि 2025 के चुनाव से पहले एआईएमआईएम ने राजद के साथ गठबंधन के लिए पूरी कोशिश की थी। अख्तरुल ईमान ढोल नगाड़े लेकर राबड़ी देवी के आवास पर पहुंचे थे। इसके बाद भी तेजस्वी यादव ने एआईएमआईएम के साथ गठबंधन करने से मना कर दिया था। इतना ही नहीं, तेजस्वी यादव ने एआईएमआईएम से आए चारों विधायकों के टिकट भी काट दिए थे।

 

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एआईएमआईएम का मजबूत प्रदर्शन महागठबंधन, खासकर राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के लिए वोट-कटवा साबित हुआ है। 2020 में भी यही हुआ था। बावजूद इसके महागठबंधन ने ओवैसी को कोई तवज्जो नहीं दी। यह रणनीति महागठबंधन को बहुत भारी पड़ गया। एआईएमआईएम का यह प्रदर्शन महागठबंधन के लिए एक बड़ा सबक भी है, वह यह कि ओवैसी की पार्टी से समझौता न करने की भारी कीमत महागठबंधन को चुकानी पड़ी है।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com