नए आपराधिक कानून न्याय प्रणाली को सुलभ, पारदर्शी, सुसंगत और समयबद्ध बनाएंगे: अमित शाह

नई दिल्ली : केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लागू किए गए तीन नए आपराधिक कानून न्याय प्रणाली को सुलभ, पारदर्शी, सुसंगत और समयबद्ध बनाएंगे। अब ‘एफआईआर करेंगे तो क्या होगा’ की मानसिकता बदलकर ‘एफआईआर से तुरंत न्याय मिलेगा’ में परिवर्तित होगी।

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने सोमवार को नई दिल्ली में आयोजित ‘न्याय प्रणाली में विश्वास का स्वर्णिम वर्ष’ कार्यक्रम को संबोधित किया। कार्यक्रम नए आपराधिक कानूनों के एक वर्ष पूर्ण होने पर आयोजित किया गया। इस अवसर पर दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता, उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना और अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे।

शाह ने कहा कि नए कानूनों में न्याय सुनिश्चित करने के लिए पुलिस, अभियोजन और न्यायपालिका को समयसीमा से बांधा गया है। 11 राज्य व केंद्रशासित प्रदेश ई-साक्ष्य और ई-समन, 6 में न्याय श्रुति और 12 में सामुदायिक सेवा के लिए अधिसूचना जारी की गई है। पिछले एक वर्ष में लगभग 14.8 लाख पुलिसकर्मियों, 42 हजार जेलकर्मियों, 19 हजार न्यायिक अधिकारियों और 11 हजार से अधिक अभियोजकों को प्रशिक्षित किया गया है। यह सुधार न्यायिक व्यवस्था में एक नया युग लाएगा।

शाह ने कहा कि भारत के नए आपराधिक कानून ‘भारतीय न्याय संहिता’, ‘भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता’ और ‘भारतीय साक्ष्य अधिनियम’ न केवल न्याय प्रणाली को आधुनिक बना रहे हैं, बल्कि न्याय को शीघ्र, पारदर्शी और सुलभ बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि इन कानूनों में समयबद्ध जांच, चार्जशीट, सुनवाई और निर्णय सुनिश्चित किए गए हैं, जिससे ‘प्राथमिकी से तुरंत न्याय’ का विश्वास लोगों में स्थापित होगा।

उन्होंने बताया कि लगभग 89 देशों के कानूनों का अध्ययन कर तकनीकी प्रावधानों को भारतीय परिप्रेक्ष्य में समाहित किया गया है। नए कानूनों में फोरेंसिक जांच, डिजिटल सबूत, एनएएफआईएस, डीएनए मिलान जैसी तकनीकों का प्रावधान किया गया है, जिससे दोषियों को दंड से बचने का अवसर नहीं मिलेगा। पिछले एक वर्ष में देशभर में लाखों पुलिसकर्मियों, न्यायिक अधिकारियों और अभियोजकों को प्रशिक्षित किया गया है।

शाह ने बताया कि दिल्ली सरकार ने कानूनों के क्रियान्वयन में सबसे तेज़ प्रगति की है। उन्होंने यह भी कहा कि नए कानून दंड से अधिक न्याय सुनिश्चित करने पर केंद्रित हैं। यह बदलाव केवल कागज़ी नहीं है, बल्कि तकनीकी और संवैधानिक दृष्टि से भारत के न्यायिक इतिहास में आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा सुधार है।

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