न्यायिक जाँच आयोग में अदालत का हस्तक्षेप उचित नहीं- सुप्रीम कोर्ट को प्रधानमंत्री का दो टूक जवाब

काठमांडू : प्रधानमन्त्री सुशीला कार्की ने सर्वोच्च अदालत में स्पष्ट किया है कि जेन जी आन्दोलन की जांच के लिए गठित आयोग के कार्य में अदालत द्वारा हस्तक्षेप किया जाना उचित नहीं होगा।

 

अधिवक्ता विपिन ढकाल ने गौरी बहादुर कार्की की अध्यक्षता वाले जांच आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए इसकी कार्यवाही रोकने की मांग के साथ सर्वोच्च अदालत में रिट दायर की थी।

 

रिट पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए अदालत ने प्रधानमंत्री सुशीला कार्की से लिखित जवाब मांगा था। अपने जवाब में प्रधानमंत्री कार्की ने कहा है कि किसी भी आयोग का गठन, पुनर्गठन, पदाधिकारियों की नियुक्ति या हटाना, विस्तार या विघटन करना- यह सम्पूर्ण अधिकार नेपाल सरकार के अधीन है।

 

प्रधानमन्त्री के लिखित जवाब में कहा गया है, “कार्यपालिका के ऐसे नीतिगत एवं कार्यकारी अधिकारों में सम्मानित अदालत से हस्तक्षेप अपेक्षित नहीं है और न ही कोई आदेश जारी किया जाना चाहिए।”

 

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि जांच आयोग के अध्यक्ष गौरीबहादुर कार्की और सदस्य विज्ञान राज शर्मा ने जांच के विषयों पर अपने विचार सार्वजनिक कर दिए हैं, जिससे उनके पूर्वाग्रह स्पष्ट होते हैं। इसी कारण उन्होंने आयोग की कार्यवाही रोकने की मांग की है।

 

प्रधानमन्त्री कार्की के अनुसार, जाँच आयोग केवल दी गई जिम्मेदारियों पर अध्ययन, अनुसन्धान कर रिपोर्ट तैयार करने तक सीमित होता है और इसके निष्कर्ष बाध्यकारी भी नहीं होते। इसलिए इस प्रकार के आयोगों पर कठोर न्यायिक निष्पक्षता के मानदंड लागू नहीं होते।

 

प्रधानमंत्री के जवाब में यह भी कहा गया है कि ऐसे मामलों में प्राकृतिक न्याय के कड़े नियम लागू नहीं होते, अतः अदालत को इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं

करना चाहिए।

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