सियासी फायदे के लिए लिफाफे में ‘धर्म’ को बेचने वाले ठेकेदार हर तरफ हैं. चुनावी पर्व में ये सक्रिय हो जाते हैं. सियासत और धर्म के ठेकेदारों की ‘अवैध’ रिश्ते की बानगी हर चुनाव में सामने आती रहती है. अब दोषी घोषित होने के बाद ये बाबा नया पैंतरा अपना रहे हैं.

भारतीय राजनीति के इतिहास में बाबाओं का बड़ा स्थान रहा है, हरियाणा भी कई बार इसका उदाहरण साबित हुआ है. अपने अनुयायियों की राजनीतिक सोच को प्रभावित करने की बाबाओं की क्षमता ने सभी धर्मों के नेताओं को उनके साथ जोड़ रखा है. पिछले कुछ सालों में स्थिति और भी दिलचस्प हो गई है, राज्य विधानसभा चुनावों के आगाज के साथ ही एक बार फिर हरियाणा में बाबाओं के डेरों ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचना शुरू कर दिया है.
यह पहला मौका है जब बिना राम रहीम और रामपाल के प्रभाव के राज्य में विधानसभा चुनाव हो रहा है. इसलिए दोनों की टीमें सोशल मीडिया के माध्यम युवाओं को जोड़ने में लगी हैं. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इसके लिए आईटी एक्सपर्ट्स हायर किए गए हैं. इन एक्सपर्ट्स की देखरेख में ही सैकड़ों लोग इन बाबाओं के लिए सोशल मीडिया पर इनके पक्ष में माहौल बनाने में लगे हैं.
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