अमेरिका ने एक बार फिर चीन और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) को लेकर पाक को सख्त चेतावनी दी है। अमेरिका ने साफ कर दिया है कि यदि पाकिस्तान इस समझौते पर अपने कदम पीछे नहीं खींचता तो इसके गंभीर नतीजे होंगे। उसे दीर्घकालिक आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ सकता है।यह तय है कि अगर अमेरिका ने यह सख्त रूख अपनाया तो बदहाल पाकिस्तान के पास कोई विकल्प नहीं होगा। अमेरिका के इस रूख से भारत के दृष्टिकोण को समर्थन मिला है। भारत शुरू से ही इस परियोजना का विरोधी रहा है। इसकी कई वजहें रही हैं।

गुरुवार को एक शीर्ष अमेरिकी राजनयिक ऐलिस वेल्स ने कहा कि चीन-पाकिस्तान का यह आर्थिक गलियारे का मकसद चीन की दक्षिण एशिया में उसकी महत्वाकांक्षा है। वह इस क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी की भूमिका में रहने की ख्वाहिश रखता है। राजनयिक ने कहा कि इस करार से पाकिस्तान को कुछ भी नहीं मिलने वाला है, इससे केवल बीजिंग को ही लाभ होगा। उन्होंने पाकिस्तान को इसके एवज में एक बेहत मॉडल की पेशकश की है।
चीन की मंशा से अनजान है पाकिस्तान
उन्होंने जोर देकर कहा कि चीन इस मंहगी योजना पर यूं ही निवेश नहीं कर रहा है। उसका मकसद पाकिस्तान का भारी कर्ज देकर उसे आवाज को दबाना है। चीन ने इस परियोजना के निर्माण में जो रणनीति अपनाई है उससे देश में बेरोजगारी बढ़ेगी। उन्होंने साफ किया कि जिस तरह से परियोजना में केवल चीन के ही श्रमिक काम कर रहे हैं, उससे पाकिस्तान में भयंकर बेरोजगारी उत्पन्न होगी। पाकिस्तान उसकी इस मंशा अनजान है।
भारतीय विरोध की बड़ी वजह
भारत द्वारा इसका विरोध इस कारण किया जा रहा है, क्योंकि यह गलियारा पाकिस्तान में गुलाम कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान और पाकिस्तान के विवादित क्षेत्र बलूचिस्तान से होते हुए जाएगा। यातायात और ऊर्जा का मिला-जुला यह प्रोजेक्ट समंदर में बंदरगाह को विकसित करेगा जो भारतीय हिंद महासागर तक चीन की पहुंच का रास्ता खोल देगाl
आर्थिक गलियारे की लंबी अवधि की योजना
18 दिसंबर, 2017 को चीन और पाकिस्तान ने मिलकर इस आर्थिक गलियारे की लंबी अवधि की योजना को मंजूदी दे दी। इस महत्वाकांक्षी परियोजना को चीन द्वारा “वन बेल्ट एंड वन रोड” या नई सिल्क रोड परियोजना भी कहा जाता है l नवम्बर 2016 में शुरू हुई इस परियोजना के तहत चार लेन के वाहन मार्ग की आधारशिला रखी गई थी। इस योजना के तहत चीन और पाकिस्तान वर्ष 2030 तक आर्थिक साझेदार रहेंगे। इसके साथ ही पाकिस्तान ने इस योजना में चीनी मुद्रा युआन का इस्तेमाल करने की भी मंजूरी दे दी है। इस गलियारे को लेकर भारत ने अपनी आपत्ति जताई है। यह गलियारा गुलाम कश्मीर से होकर गुजराता है। अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार ही यह अवैध है। भारत ने गुलाम कश्मीर को लेकर भी अपना विरोध जताता रहा है। भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपना विरोध जताया है।
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