भविष्‍य का ईंधन, ग्रीन हाइड्रोजन

प्रो.संजय द्विवेदी

वर्ष 2023 की चार जनवरी को भारत के ऊर्जा इतिहास में एक और स्‍वर्णिम अध्‍याय जुड़ा। ये था प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी देकर ऊर्जा क्षेत्र में एक नए युग का आरंभ। यह एक ऐसा मिशन है, जिसका उद्देश्य भारत को ग्रीन हाइड्रोजन और इसके सह-उत्‍पादों के उत्पादन, उपयोग और निर्यात के लिए एक वैश्विक हब बनाना है। इसके अलावा यह हमारे देश को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने और कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने में मदद करेगा। जीवाश्म ईंधन के खतरों को कम करने के लिए जर्मनी, ऑस्ट्रिया, ब्रिटेन जैसे कई देश धीरे-धीरे हाइड्रोजन ऊर्जा को अपना रहे हैं। राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के ऐलान के साथ भारत भी इस सफर का महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा बन गया है।

इस मिशन की घोषणा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्‍त 2021 को, अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण के दौरान की थी। लगभग बीस हजार करोड़ रुपए के आरंभिक परिव्‍यय वाले इस विराट अभियान की तरह इसके लक्ष्य और अनुमान भी अत्यंत महत्वाकांक्षी हैं। परियोजना का समन्‍वयन और क्रियान्‍वयन भारत सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) द्वारा और उसके दिशा-निर्देशों के अनुसार किया जाएगा। उम्‍मीद की जा रही है कि इस मिशन के माध्‍यम से वर्ष 2030 तक देश में लगभग 125 गीगावाट की संबद्ध अक्षय ऊर्जा क्षमता वृद्धि हासिल की जा सकेगी और साथ ही प्रति वर्ष ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता में कम से कम पांच मिलियन मीट्रिक टन की बढ़ोत्तरी होगी। अनुमान है कि अगले सात सालों में भारत में ग्रीन हाइड्रोजन बाजार का आकार 2030 तक आठ अरब डॉलर तक पहुंच सकता है।

6 लाख से अधिक रोजगारों का सृजन

राष्‍ट्रीय हरित हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन के यूं तो बहुत सारे लाभ हैं, लेकिन इनमें कुछ तो बहुत ही महत्‍वपूर्ण हैं। एक, इससे हमारे जीवाश्म ईंधन के आयात पर होने वाले खर्च में एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की बचत होगी। दूसरा, कुल ग्रीन हाउस गैस उत्‍सर्जन में हर साल पचास मिलियन मीट्रिक टन की कमी आएगी। तीसरा, इसकी वजह से छह लाख से अधिक नए रोजगारों का सृजन भी होगा। इसके अलावा, आशा की जा रही है कि य‍ह अभियान आठ लाख करोड रुपए से अधिक का निवेश आकर्षित करेगा। इससे हरित ऊर्जा के क्षेत्र में उद्योग और व्यापार के अवसर भी बढ़ेंगे और इस प्रकार हमारा यह राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन भारत को दुनिया में हरित हाइड्रोजन का अग्रणी उत्पादक और आपूर्तिकर्ता बना देगा। इस मिशन में नि‍हित अपार संभावनाओं को देखते हुए सरकार ने इसकी घोषणा, आरंभ और इसके लिए बजट आवंटन के काम को बहुत तेजी से आगे बढ़ाया है। इस संबंध में माननीय प्रधानमंत्री की घोषणा के तुरंत बाद नीति आयोग ने इससे संबंधित रिपोर्ट तैयार करने पर काम शुरू कर दिया और 29 जून, 2022 में अपनी रिपोर्ट पेश कर दी।

‘हार्नेसिंग ग्रीन हाइड्रोजन: अपर्च्‍युनिटीज फॉर डीप डीकार्बोनाइजेशन इन इंडिया’ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे आने वाले दशकों में भारत के आर्थिक विकास को काफी बढ़ावा मिलेगा। साथ ही ग्रीन हाइड्रोजन भारत के आर्थिक विकास और नेट-जीरो लक्ष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इसकी मदद से वर्ष 2050 तक, कुल 3.6 गीगाटन कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन कम किया जा सकता है। काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट एन्ड वाटर – सेंटर फॉर एनर्जी फाइनेंस की रिपोर्ट बताती है कि कुल ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन का तीस फीसदी सीमेंट, स्टील, केमिकल, फर्टीलाइजर, रिफाइनरी आदि फैक्ट्रियों की वजह से होता है। अगर इन्हें ग्रीन हाइड्रोजन अपनाने के लिए प्रेरित व प्रोत्साहित किया जा सके, तो इस उत्सर्जन को रोकने में काफी मदद मिलेगी। उल्‍लेखनीय है कि ग्रीन हाइड्रोजन, जल के इलेक्ट्रोलिसिस के जरिये उत्पादित अक्षय ऊर्जा है, जिसका इस्‍तेमाल उर्वरक, रिफाइनिंग, मेथनॉल, मैरीटाइम शिपिंग, लौह एवं इस्पात और परिवहन जैसे क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए किया जा सकता है।

हाइड्रोजन का सर्वश्रेष्ठ रूप है ग्रीन हाइड्रोजन

हाइड्रोजन का इस्तेमाल पिछले करीब 85 सालों से हो रहा है। 1937 में जर्मनी अपने एलजेड 129 पैसेंजर एयरशिप को हिंडनबर्ग से अटलांटिक पार पहुंचा चुका है और साठ के दशक में नासा ने भी अपना अपोलो मिशन चंद्रमा पर भेजा था। लेकिन, उसमें जो हाइड्रोजन इस्‍तेमाल हुआ था, वह ग्रे हाइड्रोजन है जो जीवाश्म स्रोतों से अर्जित होता है। वर्तमान में सर्वाधिक उत्पादन व उपयोग इसी का होता है। ग्रे हाइड्रोजन, हाइड्रोकार्बन (जीवाश्म ईंधन, प्राकृतिक गैस) से निकाला जाता है और भारत में कुल हाइड्रोजन उत्पादन में सबसे ज्यादा ग्रे हाइड्रोजन ही होता है। इससे कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जित होती है। इसी प्रकार ब्लू हाइड्रोजन भी जीवाश्म ईंधन से प्राप्त होता है। लेकिन यह ग्रे से कुछ हद तक बेहतर है, क्योंकि इसमें बायप्रॉडक्ट के रूप में मिलने वाली कार्बन डाईआक्साइड को सुरक्षित रूप से एकत्रित कर लिया जाता है।

ग्रीन हाइड्रोजन हाइड्रोजन का सर्वश्रेष्ठ रूप है । इसे प्राप्त करने के लिए बिजली का इस्तेमाल कर पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में बांट दिया जाता है। इसके बायप्रॉडक्ट ऑक्सीजन और भाप आदि हैं, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए निरापद हैं। पर्यावरण सुरक्षा के साथ आत्मनिर्भरता भी ज्ञातव्य है कि वर्तमान में भारत अपनी ऊर्जा जरूरतें पूरी करने के लिए बहुत हद तक आयात पर निर्भर है। वह 86% तेल, 54% गैस, 85% सोलर एनर्जी उपकरण और भारी मात्रा में कोयला आयात के माध्यम से ही हासिल करता है। ग्रीन हाइड्रोजन की दृष्टि से एशिया पैसेफिक क्षेत्र में अभी जापान और दक्षिण कोरिया शीर्ष पर है, जो क्रमश: 2017 व 2020 में अपनी हाइड्रोजन नीति तैयार कर उस पर अमल शुरू कर चुके हैं। भारत की रफ्तार थोड़ी धीमी जरूर रही, लेकिन भौगोलिक परिस्थितियों की अनुकूलता और प्राकृतिक तत्वों की बड़ी मात्रा में उपलब्‍धता उसे इस क्षेत्र में काफी बढ़त दिला सकती है। ग्रीन हाइड्रोजन से जीवाश्म ईंधन में उसकी आयात निर्भरता तो कम होगी ही, साथ ही साथ वह पेरिस समझौते के अन्तर्गत वर्ष 2070 तक अपने नेट-जीरो उत्‍सर्जन लक्ष्यों को भी प्राप्त कर सकेगा।

मोदी सरकार का विजन

ग्रीन हाइड्रोजन को अपनाने में नि‍हित इन लाभों को देखते हुए सरकार ने इस मामले में काफी दूरदर्शिता और सदाशयता का परिचय दिया है। इस बार के बजट में केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण द्वारा हरित ऊर्जा को लेकर की गई घोषणाएं, इसका प्रमाण हैं। बजट में वर्ष 2030 तक पचास लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। ऊर्जा बदलावों और शून्य उत्सर्जन उद्देश्यों के लिए, बजट में 35 हजार करोड़ रुपये के पूंजी निवेश का प्रावधान है। इसके अलावा सरकार चार हजार मेगावॉट क्षमता वाले बैटरी ऊर्जा भंडारण की स्थापना में सहयोग करेगी। बजट के प्रस्‍तावों के अनुसार, सरकार शहरी इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर के विकास पर हर साल दस हजार करोड़ रुपये खर्च करेगी।

जिस तरह से समस्‍त विश्‍व में वैकल्पिक ऊर्जा को अपनाने के प्रति उत्‍साह प्रदर्शित किया जा रहा है, उसे देखते हुए यह कहना गलत न होगा कि ग्रीन हाइड्रोजन, भविष्‍य का ईंधन बनने जा रही है। यह प्रकृति, पर्यावरण, अर्थव्‍यवस्‍था के अनुकूल तो है ही, साथ ही इससे संयुक्‍त राष्‍ट्र द्वारा निर्धारित सतत् विकास लक्ष्‍यों को हासिल करने में भी मदद मिलेगी।

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