अमेरिकी कंपनी ‘टेक माइक्रोसाफट’ के अंदेशों को इग्नोर न करें चुनाव आयोगः सुप्रिया श्रीनेत

प्रश्नः चुनाव आयोग के समझ चुनौतियों तो और भी कई हैं? उत्तरः संविधान के अनुच्छेद 324 (1) के तहत 25 जनवरी 1950 को भारत में निर्वाचन आयोग का गठन हुआ। तब से लेकर अब तक आप देखें, तो जरूरत के हिसाब से बदलाव चुनाव दर चुनाव हुए। पहले जनसंख्या सीमित थी, अब असीमित है, इसलिए कमियां और खामियां प्रत्येक चुनाव में ही रहीं। सवाल ये ऐसी समस्याओं से आयोग ने ईमानदारी से निपटा कैसे? कांग्रेस ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर कभी प्रत्यक्ष रूप से सवाल नहीं उठाए? पर, ऐसी तस्वीरे, जहां भाजपा नेताओं की गाड़ियों में ईवीएम की मशीने मिली, स्टृंग रूम में आयोग की टीमों के साथ भाजपाईयों की मौजूदगी रहती हो, तो शक करना स्वाभाविक है। आयोग को सबसे पहले ऐसी चुनौतियों से निपटना होगा। प्रश्नः ईवीएम की विश्वसनीयता को लेकर सवाल इस दफे भी खड़े हैं? उत्तरः ईवीएम पर आरोप हम नहीं लगाते, देश के वोटर लगाते हैं जिनका वोट ईवीएम निगल जाती है। बीते विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में एक बसपा प्रत्याशी का खुद का डाला हुआ वोट भी कहीं ओर चला गया। जिस पर उन्होंने आयोग से लेकर तमाम आला अधिकारियों से शिकायतें की, कहीं उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। ऐसे कृत्य मौजूदा लोकसभा चुनाव में न हो, इसकी आशंका पूरे देश के लोगों को है। निष्पक्ष चुनाव तभी संभव होगा, जब आयोग सत्ता पक्ष की कठपुतली न बनें। हम ईवीएम पर नहीं, उसकी कार्यशैली पर संदेह करते हैं। और उस संदेह के एक नहीं, अनगिनत वाजिव कारण और उदाहरण मौजूद हैं, जो हमने समय-समय पर मीडिया के माध्यम से देशवासियों को अवगत भी करवाया। प्रश्नः एक ये भी है, आयोग के तमाम प्रयासों के बाद भी मतदान के प्रतिशत में इजाफा नहीं होता? उत्तरः मुख्य कारण तो यही है, मतदाताओं का दिया हुआ वोट जब कहीं और छूमंतर हो जाता है, तब ऐसी स्थिति में वो सोचता है कि आखिर वोट देने से फायदा किया? बीते 2019 के लोकसभा चुनाव में 91 करोड़ मतदाताओं में मात्र 62 करोड़ वोटरों ने ही वोट डाले। ये आंकड़ा समूचे भारत का ओवरऑल है। कहीं-कहीं तो 35 से 40 फीसदी ही वोटिंग रही। चिंता का विषय ये भी है, कमी का ये आकंड़ा चुनाव दर चुनाव बढ़ ही रहा है। जबकि, आयोग का दावा है कि उन्होंने दिव्यांगजनों, वरिष्ठ नागरिकों, और महिलाओं के लिए मतदान बहुत सुगम बनाया हुआ है। अगर ऐसा है तो फिर ये वर्ग मतदान के दिन बूथों पर क्यों नहीं पहुंचते। आयोग को सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की दिशा में और कदम उठाने होंगे। सबसे पहले अपने पर लगे अनिष्पक्षता के आरोपों को भी धोना होगा। प्रश्नः मौजूदा चुनाव में आयोग की भूमिका को कैसे देखती हैं आप? उत्तरः कुछ दिन पूर्व आयोग ने अपने एक फरमान में कहा था कि लोकसभा रिजल्ट से पूर्व कोई न्यूज़ चैनल अपना ओपिनियन पोल नहीं दिखाएगा? लेकिन सभी चैनलों ने देखना शुरू कर दिया। सबसे पहले एक आदेश ये हवा हवाई साबित हुआ। दूसरी चिंता ये है कि डिजीटल युग में अत्याधुनिक कंप्यूटरिंग क्लाउड़ सर्वर, एआई और इंटरनेट मीडिया, साइबर क्राइम व हैकर्सो के हथकंड़े बेलगाम हो गए हैं। कांग्रेस नेताओं को बदनाम करने के लिए एआई तकनीक से झूठे प्रचार, जाति-धर्म पर कटाक्ष, भेदभावपूर्ण हरकतें जारी हैं। चुनाव में खुराफाती तकनीकों का इस्तेमाल मैसेजिंग के जरिए आरंभ हो गया है। होलोग्राफिक, सिनेमैटोग्राफर की मदद से भाषणों के बकायदा वीडियो बन रहे हैं। मैं खुद भुक्तभोगी हूं।

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