सज्जनता के साथ शक्ति भी जरूरी: मोहन भागवत

नई दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि भारत को इतना सामर्थ्यवान बनना चाहिए कि कोई भी शक्ति उसे पराजित न कर सके। उन्होंने संघ प्रार्थना की एक पंक्ति का उल्लेख करते हुए बताया कि यह केवल भावना नहीं बल्कि हमारा संकल्प है। उन्होंने कहा कि अपना स्वयं का बल ही वास्तविक बल होता है और सुरक्षा के मामले में हमें किसी अन्य पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।

भागवत ने संघ की विचार पत्रिकाओं के संपादकों को दिए साक्षात्कार में देश, समाज और हिंदुत्व से जुड़े कई अहम विषयों पर विस्तार से विचार रखे। उन्होंने आत्मनिर्भर सुरक्षा, सामाजिक समरसता, संघ में महिलाओं की भूमिका और धर्म आधारित जीवन मूल्यों पर स्पष्ट दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।

उन्होंने कहा कि विश्व में कुछ लोग आक्रामक प्रवृत्ति के होते हैं और केवल सज्जनता से उनकी रोकथाम संभव नहीं है। सज्जनता के साथ शक्ति भी जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि जब सज्जनता में शक्ति नहीं होती तो वह असहाय बन जाती है और शक्ति यदि सज्जनता से रहित हो तो हिंसा में बदल सकती है। इसलिए दोनों का संतुलन आवश्यक है।

उल्लेखनीय है कि मोहन भागवत का यह साक्षात्कार भारत के ऑपरेशन सिंदूर के पहले लिया गया था।

उन्होंने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुए अत्याचारों से जुड़े एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि अब वहां का हिंदू समाज पहले से अधिक जागरूक और आत्मविश्वासी हो गया है। पहले ऐसे हालात में पलायन होता था लेकिन अब वहां के हिंदू कहते हैं कि वे भागेंगे नहीं बल्कि अपने अधिकारों के लिए वहीं संघर्ष करेंगे।

भागवत ने इसे हिंदू समाज के बढ़ते आत्मबल और संगठन का संकेत बताया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्वभर में फैले हिंदू समाज के साथ खड़ा है। संघ मर्यादाओं के भीतर रहकर जहां भी संभव हो सहायता करता है। संघ का उद्देश्य केवल भारत में नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर हिंदू समाज को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाना है।

हिंदुत्व को लेकर चल रही बहस पर उन्होंने कहा कि हिंदुत्व कोई संप्रदाय नहीं है और न ही यह कोई बंद विचारधारा है। यह सत्य, करुणा, शुचिता और तपस्या जैसे मूल्यों पर आधारित जीवन दृष्टि है जिसमें विविधताओं का सम्मान और स्वीकार है।

उन्होंने कहा कि हिन्दुस्थान एक धर्मप्राण राष्ट्र है और धर्म ही सृष्टि को संचालित करता है। यह मानना या न मानना व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है लेकिन सत्य को मानने से लाभ होता है और नहीं मानने पर हानि होती है। उन्होंने यह भी कहा कि हिंदुत्व को कट्टर या राजनीतिक विचार कहना गलत है और यह केवल भ्रम फैलाने का प्रयास है।

भागवत ने कहा कि राष्ट्र की एकता का विचार संविधान में भी निहित है। हम सभी एक समाज और एक राष्ट्र हैं। यह अपनाने का विचार है ना कि ध्रुवीकरण का। उन्होंने यह भी कहा कि कोई स्वयं को हिंदू कहे या भारतीय या इंडिक- यदि उसकी भावना एकता की है तो शब्दों से फर्क नहीं पड़ता।

समरसता के विषय पर उन्होंने कहा कि केवल कानून से सामाजिक विषमता समाप्त नहीं होती क्योंकि इसका निवास मन में होता है। इसे मन से निकालना होगा। उन्होंने कहा कि बंधुभाव ही समरसता का आधार है और स्वतंत्रता तथा समता तभी टिकाऊ बनती है जब इनका आधार बंधुभाव हो। जब हम यह मानते हैं कि सभी अपने हैं तभी हम सभी समान होते हैं।

भागवत ने कहा कि हिंदू समाज को अब जागरूक होना पड़ेगा। उसे अपने भेदों और स्वार्थों को त्याग कर एक सामर्थ्यवान और नीति आधारित भारत का निर्माण करना होगा। उन्होंने कहा कि विज्ञान, कृषि और उद्योग में क्रांति हो चुकी है अब सत्य और करुणा आधारित जीवन के पुनर्निर्माण के रूप में धर्म क्रांति की आवश्यकता है।

महिलाओं की भूमिका पर उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ में महिला कार्य राष्ट्र सेविका समिति के माध्यम से होता है। संघ की शाखा का कार्यक्रम पुरुषों के लिए होता है लेकिन महिलाएं इन कार्यक्रमों में सहभागी होती हैं। उन्होंने कहा कि महिलाओं का उद्धार पुरुष नहीं कर सकते महिलाएं स्वयं ही अपना उद्धार करेंगी और इसी के माध्यम से समाज का भी कल्याण होगा। संघ उनका सशक्तिकरण करता है ताकि वे अपने निर्णय स्वयं ले सकें।

भागवत ने कहा कि संघ का उद्देश्य केवल संगठन चलाना नहीं है बल्कि एक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए जीवन के हर क्षेत्र में कार्य करना है। उन्होंने कहा कि यह कार्य किसी एक व्यक्ति का नहीं बल्कि समाज के सामूहिक प्रयास से होता है और हमें सबको साथ लेकर आगे बढ़ना चाहिए।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com