कृषि कानूनों को लेकर अरुण जेटली ने मुझे धमकाया थाः राहुल गांधी

नई दिल्ली : कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष एवं लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने दावा किया है कि तीन कृषि कानूनों पर विरोध के दौरान तत्कालीन केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने उनको धमकाया था। वहीं, अरुण जेटली के पुत्र रोहन जेटली ने राहुल गांधी पर अपने पिता को लेकर गलतबयानी का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि उनके पिता के निधन के एक वर्ष बाद कृषि कानूनों को पेश किया गया था।

राहुल गांधी ने यहां के विज्ञान भवन में शनिवार को आयोजित कांग्रेस के राष्ट्रीय कानूनी सम्मेलन में कहा कि अरुण जेटली ने उनसे कहा था कि अगर वह सरकार का विरोध करते रहे और कृषि कानूनों पर लड़ते रहे तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इस पर उनका (राहुल) जवाब था कि कांग्रेस कायरों की पार्टी नहीं है और वह कभी झुकी नहीं, न अंग्रेजों के सामने और न अब झुकेगी।

उन्होंने संविधान की प्रति दिखाते हुए उसे केवल एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि भारत की हजारों वर्षों पुरानी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपरा की अभिव्यक्ति बताया। उन्होंने कहा कि यह किताब 3,000 से 5,000 साल पुरानी सोच को दर्शाती है, जिसमें बुद्ध और अन्य महान संतों की वाणी है। उन्होंने संविधान पर हो रहे कथित हमलों की निंदा करते हुए कहा कि यह केवल एक कानूनी किताब नहीं, बल्कि भारत की जीवनशैली और पहचान है, जिस पर हमला करने की किसी को हिम्मत नहीं होनी चाहिए।

नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा कि उनकी बहन प्रियंका गांधी ने हाल ही में उन्हें चेताया था कि वे आग से खेल रहे हैं, जिस पर उन्होंने जवाब दिया कि उन्हें आग से खेलने से डर नहीं लगता क्योंकि उनका परिवार उन्हें यही सिखाता आया है। उन्होंने कहा कि कायरों से डरना सबसे बड़ी कायरता है और कांग्रेस ने कभी डर को स्वीकार नहीं किया।

वहीं, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली के पुत्र और दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ के अध्यक्ष रोहन जेटली ने एक्स पोस्ट में कहा, “मैं राहुल गांधी को याद दिला दूं कि मेरे पिता का देहांत 2019 में हुआ था और कृषि कानून 2020 में पेश किए गए थे। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि मेरे पिता का स्वभाव किसी को भी विरोधी विचार के लिए धमकाना नहीं था। वह एक कट्टर लोकतांत्रिक व्यक्ति थे और हमेशा आम सहमति बनाने में विश्वास रखते थे।”

रोहन जेटली ने कहा कि अगर कभी ऐसी स्थिति आती भी, जैसा कि राजनीति में अक्सर होता है, तो वह सभी के लिए एक पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान पर पहुंचने के लिए स्वतंत्र और खुली चर्चा का आह्वान करते थे। वह बस ऐसे ही थे और आज भी उनकी यही विरासत है। मैं राहुल गांधी को उन लोगों के बारे में बोलते समय सचेत रहना चाहिए, जो अब हमारे साथ नहीं हैं। उन्होंने मनोहर पर्रिकर जी के साथ भी कुछ ऐसा ही करने की कोशिश की, उनके अंतिम दिनों का राजनीतिकरण किया, जो उतना ही घटिया था।

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