लेख

और स्त्री फ़ोटो खिंचवा रही है

पर्वत है , वन है, वन की हरियाली है और स्त्री फ़ोटो खिंचवा रही है और वृक्षों के बीच खुद को देखना चाहती है लगभग ज़िद की हद तक कि जैसे वृक्ष हरे भरे हैं उन के बीच वह भी …

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सरोकारनामा मतलब अब सारे सरोकार मेरे, सारा आकाश मेरा !

बीते 12 सितंबर, 2013 को एन. टी.पी.सी. के लखनऊ स्थित राज्य मुख्यालय पर आयोजित राजभाषा-पखवाड़ा में बतौर मुख्य-अतिथि हिंदी ब्लागिंग पर बोलने का मौका मिला। अपने लंबे भाषण में मैं ने बताया कि हिंदी ब्लागिग मेरे लिए वैसे ही है …

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मायावती, मीडिया और नोएडा का अपशकुन

 तो क्या मायावती अगली बार फिर भी मुख्यमंत्री बन पाएंगी?  सवाल दिलचस्प है कि क्या मायावती अगली बार मुख्यमंत्री बन पाएंगी? यह सवाल उन की नोएडा यात्रा को ले कर है। अभी तक तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में किसी भी …

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बांसगांव की मुनमुन

‘पति छोड़ दूंगी पर नौकरी नहीं।’ बांसगांव की मुनमुन का यह स्वर गांव और क़स्बों में ही नहीं बल्कि समूचे निम्न मध्यवर्गीय परिवारों में बदलती औरत का एक नया सच है। पति परमेश्वर की छवि अब खंडित है। ऐसी बदकती, …

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समय से न लिखने पर रचनाएं भी रिसिया जाती हैं

सच बताऊं दो , चार ,  दस करोड़ रुपए कमा कर भी वह सुख नहीं मिल सकता जो सुख मुझे बिना एक पैसा पाए किसी रचना को पूरा कर के मिल जाता है । मिलता ही रहता है । अनमोल है …

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एक जीनियस की विवादास्पद मौत

विष्णु प्रताप सिंह जीनियस तो थे ही स्मार्ट भी बहुत थे और प्राइवेट सेक्टर की नौकरी में होने के बावजूद खुद्दार भी ख़ूब थे। यह उनकी खुद्दारी ही थी जो उनकी ओर सब को बरबस खींचती थी। उनके प्रतिद्वंद्वी और …

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छोटा हूं ज़िंदगी से, पर मौत से बड़ा हूं

छोटा हूं ज़िंदगी से पर मौत से बड़ा हूं. आलोक तोमर के निधन की खबर जब होली के दिन मिली तो सोम ठाकुर के एक गीत की यही पंक्तियां याद आ गईं. सचमुच मौत आलोक तोमर से बहुत छोटी साबित …

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जब जिसकी सत्ता तब तिसके अखबार

राजा का बाजा बजा : इधर ममता बनर्जी, सोमा को लेकर भाई लोग पिल पडे़ हैं। पत्रकारिता के प्रोडक्ट में तब्दील होते जाने की यह यातना है। यह सब जो जल्दी नहीं रोका गया तो जानिए कि पानी नहीं मिलेगा। इस …

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महिला लेखन यानी भूख की मारी चिड़िया

 महिला लेखन की बिसात और ज़मीन अब बदल गई है। शर्म, संकोच और शराफ़त की जगह अब शरारत, शातिरपन और शोखी अपनी जगह बना रही है। जैसे समाज और व्यवहार बदल रहा है, औरत बदल रही है, वैसे ही महिला …

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सच तो यह है कि कबीर के बाद कोई लेखक सेक्यूलर नहीं हुआ

फेसबुक पर तमाम लेखक लोग सेक्यूलर होने का चोंगा ओढ़ कर बैठे हैं । लेकिन सच यह है कि इन में एक भी सेक्यूलर नहीं हैं । यह अपने को सेक्यूलर कहने वाले सभी लेखक एकपक्षीय हैं । एजेंडा चलाने …

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