नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के मामले पर सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट 17 जुलाई (बुधवार) को फैसला सुनाएगा। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि पिछले 20-30 सालों में हमने स्पीकर का कद ऊंचा किया है लेकिन उसका हुआ क्या? हमें इस पर विचार करना चाहिए। चीफ जस्टिस ने विधायकों के वकील मुकुल रोहतगी और स्पीकर के वकील अभिषेक मनु सिंघवी से कहा कि आप दोनों की दलीलों में दम है और हम उसमें संतुलन कायम करेंगे।
विधायकों की ओर से मुकल रोहतगी ने कहा कि स्पीकर के सामने विधायकों को अयोग्य करार दिये जाने की मांग का लंबित होना, उन्हें इस्तीफे पर फैसला लेने से नहीं रोकता है। ये दोनों अलग-अलग मामले हैं। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के पूछने पर रोहतगी ने सिलसिलेवार तरीके से पहले दिन से बदलते घटनाक्रम की जानकरी कोर्ट को दी। उन्होंने कहा कि विधायक ये नहीं कह रहे हैं कि अयोग्य करार दिए जाने की कार्यवाही खारिज की जाए, वो चलती रहे लेकिन अब वो विधायक नहीं रहना चाहते हैं। वो जनता के बीच जाना चाहते हैं। ये उनका अधिकार है, स्पीकर इसमें बेवजह बाधा डाल रहे हैं।
उन्होंने कहा कि अगर कोर्ट पहुँचे विधायकों की संख्या हटा दी जाए, तो ये सरकार अल्पमत में है। रोहतगी ने कहा कि विधायक स्पीकर के सामने, मीडिया के सामने कई बार अपनी राय जाहिर कर चुके हैं कि वो अपनी मर्जी से इस्तीफा दे रहे हैं। फिर स्पीकर अब किस बात की जांच चाहते हैं। अगर विधायक विधानसभा में नहीं आना चाहते हैं, तो उन्हें इसके लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि हम स्पीकर को ये नहीं कह सकते कि वो इस्तीफे या अयोग्य करार दिये जाने के अपने फैसले कैसे लेंगे? हमारे सामने सवाल महज इतना है कि क्या ऐसी संवैधानिक बाध्यता है कि स्पीकर अयोग्य करार दिए जाने की मांग से पहले इस्तीफे पर फैसला लेंगे या दोनों पर एक साथ फैसला लेंगे। तब रोहतगी ने कहा धारा 190 कहती है कि इस्तीफा मिलने का बाद स्पीकर को जल्द से जल्द उस पर फैसला लेना होता है, स्पीकर फैसले को टाल नहीं सकते।
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