जहरीली हवा का बढ़ता स्तर दिल्ली-एनसीआर को अपनी आगोश में ले रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के मुताबिक भी दिल्ली-एनसीआर की हवा धीरे-धीरे जहरीली होती जा रही है। खास तौर पर सुबह व शाम के समय प्रदूषण का स्तर खराब बना हुआ है। एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) द्वारा जारी आकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में पीएम 10 का स्तर 267 तो पीएम 2 का स्तर 226 पहुंच चुका है, जो बेहद खतरनाक है।
दिल्ली-एनसीआर की दमघोंटू हवा में ग्रेप भी तोड़ने लगा दम
वहीं, दिल्ली-एनसीआर को दमघोंटू हवा से राहत दिलाने के लिए बनाया गया ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) खुद ही दम तोड़ने लगा है। राज्य सरकारों की हीलाहवाली और स्थानीय निकायों की अनदेखी के कारण ग्रेप के आधे प्रावधान कागजी साबित हो रहे हैं। जो लागू किए जा रहे हैं, उन पर भी सख्ती से कोई अमल नजर नहीं आता।
करीब दो साल बाद भी ग्रेप के कई प्रावधान इसीलिए लागू नहीं हो पा रहे, क्योंकि उनमें नीतिगत पेंच फंस रहा है। अगर एयर इंडेक्स शून्य से 50 के बीच हो तो अच्छी, 51 से 100 के बीच हो तो संतोषप्रद, 101 से 200 तक हो तो सामान्य, 201 से 300 तक हो तो खराब, 301 से 400 के बीच हो तो बहुत खराब और 401 से 500 के बीच हो तो खतरनाक मानी जाती है। 500 से ऊपर एयर इंडेक्स होने पर आपातकालीन स्थिति घोषित हो जाती है। किस स्थिति में प्रदूषण की रोकथाम और उससे बचाव के लिए क्या किया जाए, इसके मद्देनजर दो साल पहले केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने ग्रेप अधिसूचित किया था। इसमें चार अलग-अलग स्थितियों के अनुरूप मानक तय किए गए हैं, जो 15 अक्टूबर से 15 मार्च के बीच दिल्ली-एनसीआर में लागू रहेंगे। जिस स्थिति का प्रदूषण होगा, उस चरण के मानक स्वत: लागू हो जाएंगे। इन पर सख्ती से अमल की जिम्मेदारी राज्य सरकारों और स्थानीय निकाय की है।
हकीकत में दोनों ही जिम्मेदारी के निर्वहन में कोताही बरतते हुए आरोप-प्रत्यारोप के खेल में उलझ रहे हैं। ग्रेप के पहले चरण में धुआं छोड़ने वाले वाहन सड़क पर नहीं चल सकते, लेकिन हर जगह ऐसे वाहन चलते देखे जा सकते हैं। दूसरे चरण में डीजल जेनरेटर बंद हो जाने चाहिए, लेकिन दिल्ली में जहां तमाम आयोजनों में इस समय भी जेनरेटर चल रहे हैं, वहीं एनसीआर के शहरों में तो कई मॉल और सोसायटियां भी इन्हीं से रोशन हैं। पार्किंग शुल्क चार गुना तक बढ़ाने के मामले में अब तक कोई नीति फाइनल नहीं हो पाई है। बसों और मेट्रो के फेरे बढ़ाए जाने चाहिए, लेकिन बसों की जहां खरीद ही वर्षो से अटकी पड़ी है, वहीं मेट्रो के पास नए कोच खरीदने के लिए फंड नहीं है।
इसी तरह बदरपुर थर्मल प्लांट कोई विकल्प न होने के कारण आज तक स्थायी तौर पर बंद नहीं हो पाया है। कम व्यस्त और अति व्यस्त घंटों के हिसाब से बसों और मेट्रो की किराया प्रणाली भी नहीं बन पाई है। विडंबना यह है कि अधिकांश लोगों को तो ग्रेप के बारे में जानकारी ही नहीं है, क्योंकि सरकार के स्तर पर आज तक इसका कोई प्रचार-प्रसार नहीं किया गया। जब भी कभी प्रदूषण का स्तर बढ़ता है तो हरियाणा-पंजाब को पराली जलाने के नाम पर घेरना शुरू कर दिया जाता है।
हैरत की बात यह है कि पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण एवं संरक्षण प्राधिकरण (ईपीसीए) भी इस स्थिति के चलते बेबस नजर आती है। समय समय पर दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के अधिकारियों की बैठक लेने और इन सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को लिखित दिशा निर्देश देने के बावजूद सरकारी एजेंसियां लापरवाह बनी हुई हैं।
डा. भूरेलाल (अध्यक्ष, ईपीसीए) का कहना है कि ग्रेप अधिसूचित हो चुका है। ईपीसीए इसकी निगरानी कर रही है, बैठकें ले रही है और सीपीसीबी की 40 से 41 टीमें लगातार विभिन्न जगहों पर सर्वे कर नियमित रिपोर्ट बना रही है। इसके बाद जो करना है, वह स्थानीय निकायों व राज्य सरकारों को ही करना है, लेकिन अब अगर वे लापरवाही कर रहे हैं तो कुछ कहने को नहीं रह जाता।
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