दिल्ली सरकार ने राजधानी के लाखों अभिभावकों को बड़ी राहत देते हुए निजी स्कूलों द्वारा मनमानी फीस बढ़ाने पर सख्त कदम उठाया है. मंगलवार को मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की अध्यक्षता में हुई दिल्ली कैबिनेट की बैठक में ‘दिल्ली स्कूल एजुकेशन (शुल्क निर्धारण और विनियमन में पारदर्शिता) विधेयक 2025’ को मंजूरी दे दी गई. यह विधेयक निजी स्कूलों की फीस व्यवस्था को पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है. इसके लागू होने के बाद कोई भी स्कूल मनमाने ढंग से फीस नहीं बढ़ा सकेगा.
मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने क्या कहा, “दिल्ली के लाखों अभिभावकों की फीस को लेकर जो चिंताएं थीं, अब उनका समाधान होने जा रहा है. हमारी सरकार ने स्कूलों की फीस व्यवस्था में पारदर्शिता लाने के लिए ठोस और साहसिक पहल की है. पिछली सरकारें सिर्फ रिपोर्ट मंगवाती रहीं, लेकिन हमने इस मसले को गंभीरता से लिया और 1677 स्कूलों के लिए ड्राफ्ट तैयार करवाया है.”
तीन स्तरों पर निगरानी और निर्णय की व्यवस्था:
इस विधेयक के तहत फीस निर्धारण के लिए एक तीन-स्तरीय समिति प्रणाली लागू की जाएगी
1. स्कूल स्तर की फीस रेगुलेशन कमेटी:
– इसमें DOE (शिक्षा विभाग) का नामांकित प्रतिनिधि, स्कूल प्रतिनिधि और पाँच अभिभावक होंगे.
– अभिभावकों का चयन लॉटरी से होगा, जिनमें दो महिलाएं और एक SC/ST प्रतिनिधि अनिवार्य होगा.
– यह कमेटी 31 जुलाई 2025 तक गठित कर दी जाएगी और 30 दिनों में निर्णय देना होगा.
2. जिला स्तर की कमेटी:
– अगर स्कूल स्तर पर कोई निर्णय नहीं हो पाता है, तो मामला जिला कमेटी को सौंपा जाएगा.
– यह कमेटी 30 से 45 दिनों में फैसला सुनाएगी.
3. राज्य स्तरीय कमेटी:
– यदि जिला स्तर पर भी समाधान नहीं निकलता, तो मामला राज्य स्तर तक जाएगा.
– साथ ही यदि 15% अभिभावक स्कूल स्तर की कमेटी के निर्णय से असंतुष्ट हों, तो वे सीधे जिला कमेटी से संपर्क कर सकते हैं.
4. सख्त दंड और जुर्माने का प्रावधान:
– बिना अनुमति फीस बढ़ाने पर 1 लाख से लेकर 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगेगा.
– फीस विवाद के कारण बच्चे को स्कूल से निकालने पर प्रति छात्र 50,000 रुपये का जुर्माना.
– समय पर सुधार न होने पर 10 दिनों में सुधार नहीं हुआ तो जुर्माना दोगुना होगा. 20 दिन में भी कार्रवाई न करने पर स्कूल का प्रबंधन सरकार टेकओवर कर सकती है.
शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने बताया, “यह विधेयक दिल्ली के लाखों बच्चों और उनके परिवारों के हितों की रक्षा करेगा. अब स्कूलों की फीस बढ़ाने की प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी और नियामक ढांचे के तहत होगी. यह शिक्षा व्यवस्था को और अधिक न्यायसंगत बनाएगा.”