प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 16 मई यानी आज सिक्किम के लोगों को राज्य दिवस पर बधाई दी है। पीएम मोदी का कहना था कि , “इस वर्ष यह अवसर और भी खास है, क्योंकि हम सिक्किम के राज्य बनने की 50वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। सिक्किम सौम्य सौंदर्य, समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं और मेहनती लोगों का स्थान है।” आज का सिक्किम विकास की राह पर अग्रसर है। यह भारत का पहला ऑर्गेनिक स्टेट का खिताब पा चुका है। इस राज्य के नागरिक सतत विकास और पर्यावरण सुरक्षा पर विशेष ध्यान दे रहे हैं।
सिक्किम निर्माण की कहानी:
आज से 50 वर्ष पहले सिक्किम भारत गणराज्य का 22 वां राज्य बना था। यह जरूरी भी था, सिक्किम अगर अलग देश बना रहता तो भारत का अपने उत्तर पूर्व से संपर्क सदैव खतरे में रहता। खासकर जब विश्व के बहुत सारे देश भारत को मध्य एशिया जैसे देश बनाने के इच्छुक थे। शीत युद्ध के उस दौर में अमेरिका (USA) और सोवियत संघ हर देश में अपना वर्चस्व चाहते थे। भारत के पड़ोसी अफगानिस्तान की वह दुर्दशा कर दी गई थी, जिससे यह देश आज भी उबर नहीं सका है। सिक्किम के नामग्याल राजा की अमेरिकी रानी वहां कुछ और ही खेल खेल रही थी। जबकि भूटान और सिक्किम की बाहरी रक्षा की जिम्मेदारी भारत की थी। इसलिए सिक्किम का विलय भारत संघ में करने के लिए एक संविधान में संशोधन किया गया। इस आशय का एक विधेयक 23 अप्रैल 1975 को लोकसभा में लाया गया। उसी दिन यह बिल भारी बहुमत से पास भी हो गया। तीन दिन बाद राज्यसभा ने भी इसे पारित कर दिया और 15 मई 1975 को राष्ट्रपति ने इस विधेयक पर दस्तखत किए। उसी दिन सिक्किम आधिकारिक रूप से भारत संघ का हिस्सा बन गया। अगले रोज से वहां भारत सरकार के कानून लागू हो गए और नामग्याल वंश का शासन समाप्त हो गया लेकिन यह कहानी इतनी सरल नहीं है। भारत को सिक्किम की भौगोलिक और सामरिक स्थिति के कारण खुद को सदैव खतरा महसूस हुआ करता था।
यह खतरा तब और बढ़ गया जब सिक्किम के राजा चोग्याल ने एक अमेरिकी लड़की होप कुक से शादी की थी। होप कुक राजा को उकसाती कि वह सिक्किम को भारत से पूरी तरह अलग कर ले। सामरिक दृष्टि से यह अलगाव भारत को नष्ट करने वाला था क्योंकि सिक्किम पर चीन और अमेरिका दोनों की नजर थी। सिक्किम से ही सिलीगुड़ी गुवाहाटी का मार्ग गुजरता है। कुल 21 किमी चौड़ा यह मार्ग इतना संकरा है कि कोई भी महाशक्ति भारत से तत्कालीन NEFA (North East Frontier Agency) से भारत को अलग कर देता। इस NEFA में ही आज के उत्तर पूर्व के राज्य थे। अंग्रेजों ने 1914 में एक संधि कर असम प्रांत के लखीमपुर और दरांग को मिला कर North East Frontier Tact बनाया था. इसे NEFT कहा गया। 1972 में अरुणाचल प्रदेश नाम से एक केंद्र शासित क्षेत्र बन गया और फिर NEFA अस्तित्त्व में आया। 1987 में अरुणाचल राज्य बना।
सिक्किम की जनता का विद्रोह
अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम तिब्बत (अब चीन) की सीमाओं से सटे थे। 1641 में सिक्किम में लेप्चा लोगों ने एक स्वतंत्र राज्य बना कर यहां शासन शुरू किया। अगले वर्ष 1642 में नामग्याल राजाओं ने यहां बौद्ध साम्राज्य की स्थापना की। 1835 में अंग्रेजों ने सिक्किम के अधीन पहाड़ी क्षेत्र दार्जलिंग को अपने नियंत्रण में ले लिया। 1861 में सिक्किम तुमलोंग संधि के तहत ब्रिटिश संरक्षण का एक देश बना। आजादी के बाद भी सिक्किम की यही स्थिति रही। संविधान लागू होने के बाद यह भारत द्वारा संरक्षित देश के रूप में सामने आया लेकिन तब तक नामग्याल वंश के चोग्याल राजा के विरोध में सिक्किम की जनता ने विद्रोह शुरू कर दिया। राजशाही में सिक्किम की जनता के नागरिक अधिकार राजा की मर्जी पर आश्रित थे। सिक्किम का यह अंदरूनी विद्रोह भारत के लिए भी खतरा बनता जा रहा था।
राजा के खिलाफ पूरी जनता :
भारत को संदेह था कि इसके पीछे सिक्किम की महारानी होप कुक से जनता की नाराजगी है। सिक्किम के लोग अपनी इस विदेशी नागरिक से खुश नहीं थे। राजा शराब में धुत रहते और रानी अपनी मनमर्जी शासन चलाती। कहा जाता है कि राजमहल की अनगिनत बेशकीमती वस्तुएं चोरी-छुपे अमेरिका भेजी जाने लगीं। इसके साथ ही सिक्किम के खुफिया रास्ते भी। इसलिए भारत सरकार ने दखल किया और वहां पर जनमत संग्रह करवाया। राजा के विरोध में 90 प्रतिशत लोग थे। भारतीय सेना ने गंगटोक को घेर लिया और चोग्याल राजा को इस्तीफा देने के लिए विवश किया। आखिरकार, 16 मई 1975 को सिक्किम भारत संघ के एक स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। पहले ही चुनाव में राजा चोग्याल द्वारा समर्थित दल को सिर्फ एक सीट मिली। यहाँ की विधानसभा में 32 सीटें हैं।