अरुण जेटली बिहार के नहीं थे, लेकिन बीते 20 वर्षों में उनका राज्य की राजनीति से गहरा जुड़ाव रहा। राज्य में एनडीए की सरकार के गठन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। भाजपा-जदयू की दोस्ती के बीच वे गारंटर की तरह रहे। जब कभी दोनों दलों के बीच किसी मुद्दे पर तकरार हुई, जेटली ने मध्यस्थ बनकर उसका समाधान किया। सच यह है कि जेटली और नीतीश कुमार के बीच की आपसी समझदारी को गौण कर दें तो भाजपा और जदयू के बीच दोस्ती का कोई सूत्र नहीं मिलेगा।

शायद बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि अगर अरुण जेटली ना होते तो ना चारा घोटाले की सीबीआई जांच हो पाती और ना लालू यादव जेल जाते। इसके अलावा उन्होंने नीतीश कुमार को भी मुख्यमंत्री बनाने में एक अहम भूमिका अदा की थी, जिसका ढिंढोरा उन्होंने कभी नहीं पीटा।
यूं तो भाजपा के पितृ पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी ने बहुत पहले नीतीश कुमार में संभावना देख ली थी। 2000 में जब नीतीश सात दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने थे, उस समय विधानसभा में सदस्य संख्या के लिहाज से भाजपा बड़ी पार्टी थी। फिर भी नीतीश मुख्यमंत्री बने तो उसमें अरुण जेटली का बड़ा योगदान था। वह प्रयोग विफल रहा।
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